Followers

Saturday 27 April 2013






चटकीली  धूप, और गर्म  हवा के झोंकों  के बीच ,
अगर कुछ  भाता है तो  वो है,
मोगरे  को  छूकर आती हुयी,
सुबह-शाम की ठंडी हवा।।

जब भी स्पर्श करती हुयी गुज़रती  है,
मेरे करीब से,  
भूल जाती हूँ !!
तुम्हारी दी हुयी हर उलाहना ,
और खो जाती हूँ,
उस मदमस्त हवा की मस्ती में।।

सुन ऐ मोगरे !!
जल्दी-जल्दी आया कर,
मेरे बाग़ में।।


8 comments:

  1. मोगरा तो गर्मियों गर्मियों ही आएगा...मगर आँगन महकेगा बारों महीने......तुझसे प्यार हो गया है खुशबु को!!!

    प्यार!!
    अनु

    ReplyDelete
  2. कुछ तो ऐसा हो जो मन प्रसन्न कर दे और सारे दुःख दर्द मिटा दे.

    सुंदर भाव लिये कविता.

    ReplyDelete
  3. बहुत सुंदर कविता, मोगरे को बुलाने वाली पंक्ति ने चार चांद लगा दिये रचना में. बहुत शुभकामनाएं.

    रामारम

    ReplyDelete
  4. you are invited to follow my blog

    ReplyDelete
  5. बहुत सुंदर

    ReplyDelete
  6. बहुत अच्छा भाव लिए रचना
    डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
    अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
    latest postजीवन संध्या
    latest post परम्परा

    ReplyDelete
  7. सुंदर रचना मन को छूती हुई
    बधाई
    उत्कृष्ट प्रस्तुति


    विचार कीं अपेक्षा
    आग्रह है मेरे ब्लॉग का अनुसरण करें
    jyoti-khare.blogspot.in
    कहाँ खड़ा है आज का मजदूर------?

    ReplyDelete