गणित हमेशा से ही मेरा पसंदीदा विषय रहा है,
जीवन की इस उथल-पुथल में मैंने सोचा क्यूँ न जीवन को थोड़ा गणित से जोड़ा जाये .... और समाकलन जीवन से मिलता जुलता भी है।
बस बन गयी एक कविता समाकलन को जीवन से जोड़कर.....
संघर्षों का समाकलन होता है जब,
कुछ चर जुड़ते हैं,कुछ अचर जुड़ते हैं,
पर समीकरण तोड़ी जो मैंने,
ये तो है जीवन का गणित,
समीकरण बन चुकी है जो अब,
गणित की भाषा किताबों में रह गयी,
*अवकलन (Differentiation) - समाकलन का विपरीत अवकलन होता है,जिसमे समीकरण घटती जाती है।
अध्ययन के लिए मैंने यही विषय चुना,और मेरी गणित विषय में अति रुचि होने की वजह से हमेशा ही गणित की अच्छी विद्यार्थी मानी जाती थी।
मुझे "समाकलन " में बड़ा ही मज़ा आता था.....
जीवन की इस उथल-पुथल में मैंने सोचा क्यूँ न जीवन को थोड़ा गणित से जोड़ा जाये .... और समाकलन जीवन से मिलता जुलता भी है।
कहते हैं , जीवन संघर्ष का दूसरा नाम है .... और जन्म से मृत्यु तक संघर्षों के समाकलन का प्रतिफल ही तो जीवन है।
बस बन गयी एक कविता समाकलन को जीवन से जोड़कर.....
प्रस्तुत है आपके समक्ष।
बहुत पढ़ा है गणित मैंने,
पर पढ़ न सकी जीवन का गणित।
जन्म से लेकर मृत्यु तक,
जीवन संघर्षों का समाकलन है।
संघर्षों का समाकलन होता है जब,
समीकरण जीवन की बनती है तब।
संघर्षों का समाकलन करते-करते,
बढ़ती ही जाती है जीवन की समीकरण।
कुछ चर जुड़ते हैं,कुछ अचर जुड़ते हैं,
बस बढ़ती जाती हैं उलझनें कईं।
हित करता है कोई,कोई करता अनहित,
फिर मन चाहता है कर दूँ अवकलन*।
पर समीकरण तोड़ी जो मैंने,
कई जीवन बिखर जायेंगे।
कर नहीं सकती अब अवकलन,
किया तो बहुत पछ्ताउंगी।
ये तो है जीवन का गणित,
जिसमें पीछे जाना मुश्किल है।
चाहे बुरे हों , चाहे अच्छे,
उन चर-अचरों संग जीना है।
समीकरण बन चुकी है जो अब,
उसको ही लेकर आगे बढ़ना है।
समाकलन ही समाकलन है,
अवकलन का तो विकल्प ही नहीं अब।
गणित की भाषा किताबों में रह गयी,
जीवन का गणित जब समझ में आया।
बहुत पढ़ा है गणित मैंने,
पर पढ़ न सकी जीवन का गणित।
*अवकलन (Differentiation) - समाकलन का विपरीत अवकलन होता है,जिसमे समीकरण घटती जाती है।
lovely poem.... truth of the life....
ReplyDeletethanks a tonnn bharti.... nice to see you here... :)
Deletebhut achi poem ...sach mein true picture of lyf:))
ReplyDeletebhut pyaari poem jivan ko btati hui :))
ReplyDeletethank you very much... :)
Delete10/10
ReplyDeletetoo good meenakshi...
:-)
bless u dear
anu
thanks for the marks..... :)
ReplyDeletebahut khoob kaha Meenakshi ji aapne. truly very good poem.
ReplyDeletetruly very good poem...
ReplyDeletethanks a lot mita ji
Delete:)
regards
awesum presentation.. thanks..
ReplyDeleteगणित में मैं कोई खास अच्छा नहीं रहा, गणित से प्रेम की बात तो बहुत दूर की है..फिर भी इस कविता को मैं भी अनु जी की तरह 10/10 दूँगा....
ReplyDeleteहमारे अभिषेक ओझा बाबू ने भी अपने गणितीय प्रेम में आकार एक प्रेमपत्र तक लिख दिया था..आपको गणित से प्यार है तो वो लिंक भी दे रहा हूँ - http://uwaach.aojha.in/2011/12/blog-post.html
:)
dhanyawaad abhi
Deletei'll see the page... sure
बस भटकते-भटकते आपके ब्लॉग तक पहुच गया. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति. अति उत्तम.
ReplyDeletethanks :)
Deleteबहुत सुन्दर और सार्थक सृजन , आभार.
ReplyDeleteकृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारकर अपनी शुभकामनाएं प्रदान करें.
वाह! क्या आकलन है जीवन का
ReplyDeletethank you rajeshji
Deleteबस भटकते-भटकते आपके ब्लॉग तक पहुच गया बहुत सुन्दर और सार्थक सृजन
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