बस "अम्मा" की यादें ही तो अब शेष थीं ,जब तक जीती रही दूसरों के लिए जीती रही,शायद यही उसकी नीयति थी ..... यही दुनिया है .... अचानक सोचते-सोचते आकांक्षा का दुपट्टा चलती बस के बाहर उड़ने लगा ,सड़क पर चल रहे एक स्कूटर वाले ने आवाज़ लगायी ,बहनजी आपका दुपट्टा बाहर उड़ रहा है .. आकांक्षा चौंक गयी ..... उसने अपने ख्यालों में खलल डालते हुए दुपट्टा अन्दर किया,आज आकांक्षा को "अम्मा" याद आयी ...... जो लोग दिल में बस जाते हैं उनकी यादें उनके जाने के बाद भी साथ ही रहती हैं !!
चेहरे पर अनगिनत झुर्रियां,मिचमिची भूरी आँखें ,चेहरे का काला पड़ा रंग मानो झुलस गया हो,बाहर की तरफ निकले हुए दांत ,कमर में थोडा सा झुकाव भी आ गया था,मैली-कुचेली सी साड़ी पहने हुए ..... पचास से ऊपर होगी जब "अम्मा" पहली बार रेखा के घर बर्तन मांजने आई थी !! "अम्मा" को देखते ही बच्चे डर के भाग जाते ,कई दिनों तक ऐसा ही चला ...... अस्सी रुपये महीना और सुबह-शाम कप भर चाय .... "अम्मा" खुश थी इतने में ही !!
पता नहीं क्या हालात रहें होंगे उसके अपने बच्चों को पालने के लिए वो बर्तन मांजा करती घर में,और भी कोई कुछ काम बता दे तो कर देती .....
उन दिनों रेखा बहुत बीमार रहने लगी थी ,अकेले उस से अब सारा काम नहीं होता था .... बच्चे-घर-मेहमान-सास-ससुर सबका काम तो उसे ही देखना था ,उसे एक काम करने वाली कि जरुरत थी ,अम्मा उसके लिए एक एंजल बनकर आई थी!!
"अम्मा" रोज़ आती और बिना कुछ बोले उसे एक कप चाय मिल जाती,चुपचाप बर्तन मांजती और चली जाती,कभी-कभार बच्चे दिख जाते तो बड़ी करुणा में आकर सर पर हाथ भी फेर देती वो ......रेखा भी चुपके से उसको अपनी पुरानी साड़ियाँ दे देती कभी-२ , और वो मन ही मन खुश होकर चली जाती ....
काफी साल गुजरे ,ये सिलसिला चलता रहा .... अब तो बच्चे भी "अम्मा" के आदि हो गये ... एक दिन उनको न देखें तो काम नहीं चलता उनका ... !! माँ से पूछते क्या हुआ "अम्मा" क्यूँ नहीं आयी .... कमर और झुक गयी अम्मा की ,काम करते करते !!
बड़ी खुश थी "अम्मा" , अपने बेटे का ब्याह जो कर रही थी .... रेखा के ससुर ने भी कह दिया अपने बेटे से,इस बार "अम्मा" को लड़के कि शादी में कुछ अच्छा भारी सा बर्तन ला देना गिफ्ट में !!
अम्मा बेटे की शादी भी हो गयी !!
"अम्मा" आती रही .... कुछ ही दिन हुए थे कि "अम्मा" रोती रहती , रेखा ने पूछा क्या हुआ "अम्मा" तुम्हे .... अब तो बहु भी आ गयी है ... क्यूँ दुखी हो !! "अम्मा" ने कहा मेरी बहु मुझे "रोटी" नहीं देती .... भूखी-प्यासी काम करती रहती हूँ .... रेखा को दया आ गयी,उसने कहा "अम्मा" तुम तो हमारे घर जैसी हो, यहाँ खा लिया करो एक टाइम रोटी ,रेखा दिन का खाना खिला दिया करती अम्मा को ,और चुपचाप से ४ रोटी बाँध भी देती रात के लिए कि अगर न मिले तो खा लेना आचार से ..... एक नाता सा बंध गया था "अम्मा" का उस घर से ...
अब रेखा के ससुर ने भी कह दिया था कि अम्मा को अस्सी रुपये कि जगह सौ रुपये दो ...... बहुत दिनों से कह रही है बढाओ पैसा ....
और समय बीता रेखा बहुत बीमार हो गयी ,"अम्मा" उसकी स्थिति देखकर कई बार रो देती, पर क्या कर सकती थी, लाचार थी ..... १० साल हो चुके थे अब उसे वहां काम करते-करते ... रोते-रोते बच्चों के सर पर हाथ फेर देती बस .....!!
एक दिन रेखा दुनिया छोड़ कर चली गयी ... घर और बच्चों पर तो गाज गिरी ही .... "अम्मा" भी खूब फूट-फूट कर रोई ....... पर जिसे जाना है उसे कौन रोक सकता है भला ... वो चली गयी,इतना ही समय लिखवाकर लायी थी भगवान से अपने लिए वो .....!!
रेखा के जाने के बाद "अम्मा" और टूट गयी ,कमर ज्यादा झुक गयी अम्मा की ,मानो उसके भरोसे चल रही थी अब तक ..... रेखा कि तीसरी बरसी थी इस बार .... अम्मा भी बहुत बीमार रहने लगी थी ,उसने सब घरों का काम छोड़ दिया ,बस रेखा के घर आती रही काम करने !!
रेखा के ससुर मना करते कि अब मत काम कर अम्मा ,तेरे घर सौ रुपये पहुंचवा देंगे ,कोई जरुरत नहीं काम करने की अब,आराम कर ...... पर अम्मा का तो मन नहीं मानता बिन माँ के बच्चों को एक बार देखे बिना ..... उनके सर पर हाथ फेरे बिना,कुछ ज्यादा तो नहीं कर सकती थी उनके लिए,बस एक नज़र देख तसल्ली कर लेती थी, जैसे रेखा की कोई बात निभा रही हो !!
अब रेखा के ससुर ने सख्त मना कर दिया कि अम्मा अब काम पर मत आना ,तुम्हारी उम्र हो चली है,बीमार रहती हो,क्यूँ मरती हो हमारे लिए ... हमें अच्छा नहीं लगता ... हम तुम्हे सौ रुपये भिजवा देंगे घर .. हाँ कभी राजी-ख़ुशी पूछने आ सकती हो ,आराम करो अब घर पर ही ......
कभी रेखा के ससुर ही चक्कर लगा आते अम्मा के घर बाहर से ही हाल-चाल पूछ आते,बच्चों को बता देते !!
एक दिन खबर आई "अम्मा" नहीं रहीं ...... बस उस घर पर दूसरी गाज गिरी हो जैसे ...... बच्चे और उदास हो गये ..... पर उसे तो जाना ही था !!
वो चली गयी,पर घर में सभी उसको याद करते रहते, सबके दिलों में जिंदा थी वो ...... !!