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Saturday 8 February 2014

झल्ली


- चित्र गूगल से साभार 
जानता था !!

वो जीती है ख़्वाबों में,
उंघती हुयी अधनींदी सी ...
ख्यालों में बनाती है,

बादलों के महल ....
प्यार की मखमल के,
होते हैं परदे उस महल के .....

मुरझाने वाले असली फूलों को,
जिंदगी समझती है वो ....
एक दिया जलता रहता है,
राह तकता हुआ सा हमेशा ......

और दरवाज़े खुले होते हैं हमेशा,
उसके इंतज़ार में ....... 

चाँद उसे दीवाना लगता है ,
और तारों को वो गिनती रहती है ......  
झल्ली है वो ..... !!
जो ये भी नहीं जानती .... ये दुनिया उसकी अपनी सजाई हुयी है ..... !!
मैं उस दुनिया का हूँ ही नहीं ..... !!



6 comments:

  1. कभी कभी अपनी बनायी दुनिया ही अच्छी लगती है इस बेरुखी दुनिया से
    बहुत खूब !!

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  2. शब्दों को नयी पहचान देना आपकी कलम की विशेषता है

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  3. मिसी मासूम दिल की भावनाओं को शब्द दिए हैं ... बहुत लाजवाब ...

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  4. कोमल एहसास से भरी कविताएँ..अच्छी लगीं।

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