बीज ... समाये हुए अपने अन्दर !!
एक हरी-भरी दुनिया,
किसी परिंदे का घर,
किसी फूल की खुशबू,
हवाओं की ताजगी,
और कई सूखी आँखों के लिए हरेपन का सुकून !!
बढ़ने को ,पलने को .....
ज़रूरी है उसको नमी और धूप,
जबकि जीजिविषा हो उसमे,
पनपने की,बढ़ने की,लहलहाने की ,
वरना सुखा देगी वो धूप उसे,
सड़ा देगी नमी उसको ..... !!
रिश्तों का इक बीज बोने को,
नमी की कोई कमी न रखी,
ऊंची-ऊंची खूंटियों पे टाँगे रखा कई बार,
कि दीवार के उस ओर से आये कोई कतरा,
तेरी धूप का कभी !!
पर तेरी दीवारें तो,
मेरी उन ऊंची खूंटियों से भी ऊंची हो चुकी हैं !!
सीले से उस रिश्ते के बीज को,
ठंडी हवाएं कभी-कभी आकर सताती हैं,
ठहाके लगाती हैं उसे देखकर,
और कहती हैं,
देख .... तू हार गया इस दुनिया से ,
जहाँ रिश्ते ही रिश्तों को मारते हैं !!
ऊंची-ऊंची खूंटियों पे टाँगे रखा कई बार,
ReplyDeleteकि दीवार के उस ओर से आये कोई कतरा,
वाह सुंदर.
रिश्ते का बीज !!
ReplyDeleteबहुत सुंदर ...........
सुन्दर भाव समेटे .. अच्छी रचना .. बहुत बधाई .
ReplyDeleteKAVYASUDHA ( काव्यसुधा )
हारना गलत है और हम हारेंगे नहीं, उसी बीज से बना लेंगे रिश्तो के कई पौधे....
ReplyDeleteरिश्तों का इक बीज बोने को,
ReplyDeleteनमी की कोई कमी न रखी,
Riston ka beej ko panapne ke liye pyar kaa ushmaa chahiye...anyathaa nami se sadh jaataa hai ...bahut sundar
जहां रिश्ते ही रिश्तों को मारते हैं---सब कुछ कह दिया.
ReplyDeleteआएं कुछ धूप को और आने दें आंगनों तक ,विद्वेशों की ऊंची दीवारों को
छोटा करते जाऎं,आखिर हम ने भी तो उठाईं हैं,कुछ दीवारें.
कल 27/02/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद !
बहुत सुन्दर..
ReplyDeletesundar prastuti ..
ReplyDeleteबहुत सुंदर और भावभीनी रचना , मीनाक्षी जी .....पहली बार आपके ब्लॉग पर आना सार्थक रहा
ReplyDeleteसानुपातिक धूप और नमी बीज की तरह रिश्तों को भी चाहिये होती है .....तभी तो वे फलते फूलते हैं ..... धन्यवाद.....