यादों के उस मंज़र से मैंने, वो इक दिन दिल में संजो लिया है,
जिस दिन मुझे मिला था कारण ,जीवन अपना जीने का.......
तुमने ही अहसास कराया ,मेरा भी अस्तित्व है,
भूल गयी थी वरना मैं तो ,अहसास ही मेरे होने का.....
उन चंद लम्हों में जैसे, जी ली मैंने कई खुशियाँ हैं,
डर नहीं रहा मुझको जैसे,कुछ भी अब तो खोने का.....
रहती हैं वो यादें जहाँ ,मन का वो इक कोना है,
करती रहती हूँ जतन अब हरदम , उस कोने को सजाने का......
जानती हूँ तुम्हारे लिए ये,एक अजनबी सी पाती है,
है बहाना मेरे लिए ये, अकेले बैठकर मुस्कुराने का......
यादों के उस मंज़र से मैंने, वो इक दिन दिल में संजो लिया है,
जिस दिन मुझे मिला था कारण,जीवन अपना जीने का.......
बहुत खूब ...
ReplyDeleteशुभकामनायें आपको !
धन्यवाद !!!!
Deleteआभार
मीनाक्षी
तुम्हारी पहली लाइन ने ही दिल जीत लिया...
ReplyDeleteयादों के उस मंज़र से मैंने, वो इक दिन दिल में संजो लिया है,...
बहुत सुन्दर मीनाक्षी..
जियो.
सब आपके प्रोत्साहन के फलस्वरूप है....
ReplyDeleteसराहना के लिए बहुत बहुत धन्यवाद .... :)
jndagi jeene ke karan dhundhna..achchha laga:)
ReplyDeleteरहने दे आसमान, ज़मीन की तलाश कर, सब कुछ यहीं है, कहीं और ना तलाश कर हर आरज़ू पूरी हों, तो जीने का क्या मज़ा, जीने के लिए बस एक खुबसूरत वजह की तलाश कर.......
Deletethanx
Nice Poem
ReplyDeleteरहने दे आसमान, ज़मीन की तलाश कर, सब कुछ यहीं है, कहीं और ना तलाश कर हर आरज़ू पूरी हों, तो जीने का क्या मज़ा, जीने के लिए बस एक खुबसूरत वजह की तलाश कर.......
ReplyDeletethanx... :))))
मीनाक्षी जी
ReplyDeleteनमस्कार !
........बहुत खूब...बेहतरीन प्रस्तुति...
..........आज पहली बार आपको पढ़ा बेहतरीन कविता
धन्यवाद .... :)
Deleteउन चंद लम्हों में जैसे, जी ली मैंने कई खुशियाँ हैं,
ReplyDeleteडर नहीं रहा मुझको जैसे,कुछ भी अब तो खोने का.....
सच है ऐसे चंद लम्हे भी जीने के लिये अनमोल हो जाते है. अच्छी प्रस्तुति मीनाक्षी. तुम्हारा ब्लॉग भी मैंने ज्वाइन कर लिया है. शुभकामनायें.
धन्यवाद रचनाजी..... :)
ReplyDeleteक्या बात है! बहुत खूब! :)
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