इसे प्यार कहूं,लगाव कहूं,या कहूँ तुम्हारा अपनापन,
पल पल मुझको जो अहसास तुम्हारा रहता है,
तुम नहीं थे मेरे साथ कभी और ना ही होगे साथ कभी,
साथ तुम्हारे होने का विश्वास मगर है साथ मेरे,
तुम्हारे आने के पहले तो कभी,तुम्हारा इंतज़ार नहीं था,
और तुम्हारे जाने के बाद,तुम्हारा इंतज़ार ही बस अब साथ है,
पता नहीं क्यूँ तुम मेरी,आदत सी बन गए हो अब तो,
जिस पल न हो अहसास तुम्हारा,भीड़ में भी लगती तनहाई है,
कभी कभी बेनाम से रिश्ते जीने का मकसद होते हैं,
चाहे न हो साथ कभी पर साथ में अकसर होते हैं.....
तुमने वैसे तो कोई वादा नहीं किया मुझसे,
पर न जाने मुझे किस वादे की तलाश है,
पता है मुझको तुम वापस नहीं आओगे,
पर फिर भी दिल में आस है,एक विश्वास है.....
एक विश्वास है......
मेरे लिए एक ऐसी मरीचिका हो तुम,
जिसका आभास मुझे अब प्यारा है,
जीवन का अनमिट पहलू है ये,
जो मेरे लिए दूर का तारा है.......
पर फिर भी दिल में आस है,एक विश्वास है.....
एक विश्वास है......
विश्वास पर ही तो सृष्टि कायम है...............
ReplyDeleteयही अटूट विश्वास ऊर्जा देता है हमे जीने की.....विपरीत परिस्थितियों में....
कभी कभी बेनाम से रिश्ते जीने का मकसद होते हैं,
चाहे न हो साथ कभी पर साथ में अकसर होते हैं.....
बहुत प्यारी अभिव्यक्ति मिनाक्षी.
ढेर सा प्यार!!
बहुत बहुत धन्यवाद सराहना के लिए.....
Deleteआपके स्नेह की सदा आभारी
मिनाक्षी
minakshi ji,
ReplyDeletepahli baar aapke blog par aaya rachna padkar achchha laga
thanks you very much.... :)
ReplyDeleteबहुत सार्थक रचना है
ReplyDelete.......मेरा ब्लॉग ज्वाइन करने के लिए बहुत बहुत आभार
:)
DeleteSundar prastuti
ReplyDeletethank youvery much,,,
Deleteसुन्दर सृजन , बेहतरीन भावाभिव्यक्ति.
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग" meri kavitayen" पर भी पधारें, आभारी होऊंगा .
धन्यवाद बहुत बहुत ...:)
Deleteआशा बनाये रखें ....
ReplyDeleteशुभकामनायें !
thankyou....:)
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