कभी किताबों में,कभी किस्से कहानियों में,
कभी दादी की बातों में,तो कभी लोगों की कहावतों में,
सुना है कि सितारे अपनी चाल बदलते हैं.....
मुझे भी इंतज़ार है उन सितारों की चाल बदलने का,
तकती हूँ कई बार आसमान मैं भी,
सोचती हूँ कभी तो बदलेंगे ये अपनी चाल मेरे लिए.....
कभी-कभी तकते तकते झगड़ने लगती हूँ मैं उन सितारों से,
झुंझला जाती हूँ जब अपने अकेलेपन से,
दूर कर लेती हूँ अपनी झुंझलाहट उनको कोस कर......
कभी किसी सितारे को रोकने का भी मन करता है,
उसके साथ बैठकर अपना खालीपन भूलने का मन करता है,
पर अविराम उन सितारों को तो रोकना असंभव ही है.........
हे सृष्टि के रचनाकार !!
ये कैसी विडम्बना है,
मेरे इस इंतजार का क्या कोई अंत है????
क्या कभी बदलेंगे मेरे सितारे अपनी चाल????
इन सवालों में खोयी मैं उन सितारों से ही रूठ जाती हूँ,
जिन्हें तो बस चलना है चलते जाना है ,
उनकी चाल तो कोई और ही बदलेगा........
मेरा इंतजार थमा नहीं अब तक,
पर इस इंतजार में, सितारों से अपने दुःख-सुख जरुर बाँट लिए मैंने,
उन सितारों में ही कई अपने ढूंढ लिए मैंने.......
....बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..!
ReplyDeletethanks...:)
Deleteआज आपके ब्लॉग पर बहुत दिनों बाद आना हुआ अल्प कालीन व्यस्तता के चलते मैं चाह कर भी आपकी रचनाएँ नहीं पढ़ पाया. व्यस्तता अभी बनी हुई है लेकिन मात्रा कम हो गयी है...:-)
ReplyDelete