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Friday 24 February 2012

"उल्फत"

तेरी उल्फत याद करके दिल ये मेरा रो दिया ,
कह पड़े ये लब सहमके तुमने मुझको खो दिया ,
मुद्दतों से हमने जिस रिश्ते को अपना था कहा,
दो-चार लफ्ज़ बोलके तुमने उसे झुठला दिया,
 अरसों  से तुम्हारी खुशियों पे होते रहे हम फंना,
मिन्नतों को हमारी तुमने ही  कर दिया अनसुना,
मन्नतों का तुम्हारे लिए किया था महल खड़ा,
आज उस महल में खुद को ही पाया हे तनहा,
लबों पे हमारे आज भी तेरे लिए बस हे दुआ,
रब की मर्जी ही सही जो कर दिया हमको जुदा,
तेरी उल्फत याद करके दिल ये मेरा रो दिया ,
कह पड़े ये लब सहमके तुमने मुझको खो दिया....................

4 comments:

  1. बहुत सुन्दर मिनाक्षी..
    अच्छे भाव हैं आपकी कविता के...

    सस्नेह..

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    1. धन्यवाद .... आपने सराहा , मेरे लिए सम्मान की बात है.... :)

      साभार

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  2. बहुत भावपूर्ण लिखतीं हैं आप.
    पहली दफा आपके ब्लॉग पर आना हुआ.
    अच्छा लगा आपको पढकर.

    आपका दूसरा फालोअर बनते हुए खुशी मिल रही है मुझे.

    मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है.

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    Replies
    1. thanks for following me... write more n more...

      आप लोगों के आशीर्वाद से

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