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Thursday 28 February 2013

क्यूँ मैं ही हमेशा मनाऊं तुम्हें ?????

जाओ !!

आज नहीं करनी बात तुमसे,
रोज़ तो करती हूँ,

आज नाराज़ हूँ तुमसे मैं,
ना जाने क्यूँ,

देखो तो दुपहरी चढ़ आई है,
पर मन नहीं तुमसे बात करने का,

नहीं जलाया तुम्हारे मंदिर मे दिया भी आज,
जिसके बिना दिन अधूरा सा लगता है मुझे,

और तुम निष्ठुर,
आये मुझसे बात करने ????
भगवान हो न तुम !!
क्या तुम्हें ही नाराज़ होने का हक है????

क्यूँ मैं ही हमेशा मनाऊं तुम्हें ?????



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लो !!
मना ही लिया आखिर तुमने ,
बुला लिया घर अपने मुझको ,
भूल गयी सारी नाराज़गी ,
जैसे ही सुगंधित वातावरण ने घेरा मुझको,
मिश्री घुल गयी कानों में,
सुनकर वो आरती का शंखनाद,
तुमसे भी कोई नाराज़ हो सकता है भला !!


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Wednesday 27 February 2013

उसके माथे पर पड़ने वाली लकीरों को देख,
कहते थे सब,

किस्मत वाली है वो!!

पर उसे तो ये पता था बस ,
कि किस्मत,
हाथों से बनानी है उसे !!

शायद जल्दी ही समझ गयी थी वो,
की साया भी साथ छोड़ देता है,
मुश्किलों में कई बार ......!!

किस्मत बनी ही नहीं है उसके लिए,
लोग तो यूँ ही ,
बातें किया करते हैं !!

Thursday 14 February 2013

"वह-प्रेम-पांखुरी"


निः-स्वार्थ भाव लिए एक कली अपने बागीचे में,
बैठी थी कई स्वप्न संजोये अपने मन में।।
स्वच्छंद पक्षियों के कलरव को समाये अपने ह्रदय में,
उड़ान भर रही थी वह कल्पना के आकाश में।।
निर्मलता को पा रही थी वह चन्द्रमा की चांदनी में,
तेज का पान किया उसने सूर्य की रौशनी में।।
जब वह कली खिली अपने अधरों पे मुस्कान लिए,
सुगंध ही सुगंध बिखर गयी उस भोर की लालिमा में।।
जिस भोर की थी प्रतीक्षा उसे अपने जीवन में,
यह वही सुन्दर भोर थी जो पली थी उसके निर्मल उर में।।

मंडराता-इतराता भंवरा जब आया उस बाग़ में,
कली शरमाई-सकुचाई-घबरायी अपने आप में।।
उसने पूछा भँवरे से बात ही बात में,
कौन हो तुम कहाँ से आये हो मंडराते हुए इस बाग़ में।।

भँवरे ने कहा-मित्रता करोगी मुझसे ???????
मैं नया नहीं हूँ इस बाग़ में,
स्वागत है तुम्हारा सच्चे ह्रदय से मेरे मन के तड़ाग में।।

समय बीता कुछ और भंवरा चला गया अपनी धुन में,
परन्तु जब प्रेम की पहली किरण गिरी किसी मुस्कान पे,
तो झरी पत्तियों में एक प्रेम पांखुरी मिली उस कली की,
क्या यही था उसकी निः-स्वार्थता का परिणाम ???????????????

Wednesday 13 February 2013

"बसंत"



 पीत वसना धरती हरित है,
आम पर झूमकर आई बौर है,
बिखर रहे कोकिला के स्वर हैं,
बरस रहा मधुमास का रस है,
डालियाँ पुष्पों से लदी हुयी हैं,
गुलाब पर कलियाँ खिली-खिली हैं,
हर   पौधा   मुस्कुरा   रहा  है,
गीत प्यारे गा रहा है,
उद्यानों की छटा निराली है,
बसंत ऋतू की निकली सवारी है,
किसी ने बाग़ में डंका बजाय है,
अरे भँवरे ने कहा बसंत आया है,
मनोहारी ठण्ड का मौसम आया है,
दिन की धुप में बड़ा मज़ा आया है,
देखो बसंत पंचमी का दिन आया है,
ब्रह्म्प्रयागिनी की पूजा लाया है,
हे वरदायिनी !!
वीणावादिनी !!
चहुँ और मुखरित तेरा ही गान है,
सुमगे वर दे ,हे विद्यादायिनी !!,
तेरे ही ज्ञान का फैला प्रकाश है...