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Wednesday 19 December 2012

पूजी जाती है "कामाख्या"



आज आंसू निकल आये उस लड़की की स्थिति सुनकर,बहुत हिम्मत जुटाकर कुछ शब्द जोड़े हैं .... भरे गले से निकली आवाज़ ..... एक पुकार .....
सोचती हूँ .. आप सब समझेंगे ......


नहीं चाहती!!
मैं नहीं चाहती अब ये,
कि  ये घाव भरे कभी।।
इस पर नमक छिड़कते रहना ज़रूरी है,
याद दिलाने के लिए तुम्हे,
कि मानवता को रोंदा है आज तुमने,
अपने पैरों तले, ऐ पुरुष!!

राक्षसों को मात दी है,
सारी सीमाएं लांघ दी हैं,
ये कैसा पुरुषत्व है तुम्हारा????
ये कैसा अहम् है तुम्हारा??????
जिसने तुमको जन्म दिया है,
उस नारी-जाति की आत्मा को चीर डाला??????

क्यूँ !!
अगर गुड़ियों के साथ खेली है वो,
तो इसका मतलब ये तो नहीं ,
कि वो भी एक गुडिया है …. !!

मौन,
बेजान !!

अरे!!
ऐसा कैसे समझ लिया तुमने ?????
वो तो शक्ति है,
सहनशीलता की मूर्ति है,
सृष्टि की ऐसी कल्पना है,
जिसके बिना तुम्हारा अस्तित्व शून्य है !!


  
चेतावनी तुमको है देनी,
पूजी जाती है "कामाख्या"* ……            
उसके एक रूप को,
जिस क्रूरता से है रोंदा गया,
कुछ तो वेदना हुयी होगी उसे भी!!!!! 


कामना है आज मेरी ....
जागृत हो जाए उसी शक्तिपीठ से आज,
बन के चंडी कर दे पापियों का संहार  .....!!

ऐसा दुस्साहस न कर पाए कोई,
कोई और "दामिनी" न जन्म ले अब,
कोई साँसें अब यूँ न बिखरें ,
कोई और नारीत्व न  कुचला जाए ,
कोई अबला अब न सिसके !!

 *(51 अंगों में से एक अंग सती का ......-योनि)

ॐ एं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे !!





Monday 17 December 2012

"गोभी के परांठे"



कल बनाते वक़्त "गोभी के परांठे" ..............

पता था मुझे .... हमेशा की तरह तुम कहोगे आज भी ...!!
कि उन परांठों का स्वाद भुलाये नहीं भूलता,
तुमसे नहीं बनते वैसे परांठे।

अचानक मन चला गया फिर से अतीत में,
जब एक लॉन्ग राइड के बाद ....
कुछ पल साथ बिताने को,
एक गोभी का परांठा ...
ढाबे की अनहाइजिनिक सी टेबल पर,
लोकल टाइप के सॉस से ....
शेयर करके आधा-आधा खाते थे,
नहीं सोचते थे कुछ भी,
कुछ और समय साथ रहने को दूसरा परांठा आर्डर कर देते थे ...

उस बीच तेरी आँखों का मुझसे कुछ कह जाना,
और मेरे चेहरे पर छा जाना गज़ब सा उजास।
दिन ख़त्म हो जाता था साथ-साथ,
पर बातें थी कि ख़त्म नहीं होती थी।
फुर्सत के उन पलों  में जिए जो  दिन हमने साथ,
हाँ वो स्वाद उन दिनों का .......
उन "गोभी के परांठों" की तरह .....
आज भी भुलाए नहीं भूलता मुझे ...


Sunday 16 December 2012

"ठिठुरता मन"


भीगा आँचल,सीला सा मन,
दृग अश्रु-गागर  भरमाये।।
धूप की प्रतीक्षा करते-करते,
सांझ की देहली पार कर आये।।
ठिठुरेगा मन आज भी यूँ ही,
दुःख के बादल हैं जो छाये।।
ढलता दिन कह रहा है तुझसे,
ओढ़ ले तू भी मिथ्या के साए।।
जीवन पथ ये कंटकमय है,
नीरव बस तू चलता जाए।।
आह जो निकली मन से तेरे,
जग तुझपे ही हसेगा कल को।।
उत्तरदायित्व वहन करने हैं तुझे तेरे,
प्रण कर उस पथ अग्रसर हो जा मन।।