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Sunday 18 March 2012

"वो इक दिन"

 
यादों के उस मंज़र से मैंने, वो इक दिन दिल में संजो लिया है,
जिस दिन मुझे मिला था कारण ,जीवन अपना जीने का.......
 
तुमने ही अहसास कराया ,मेरा भी अस्तित्व है,
भूल गयी थी वरना मैं तो ,अहसास ही मेरे होने का.....
 
उन चंद लम्हों में जैसे, जी ली मैंने कई खुशियाँ हैं,
डर नहीं रहा मुझको जैसे,कुछ भी अब तो खोने  का.....
 
रहती हैं वो यादें जहाँ ,मन का वो इक कोना है,
करती रहती हूँ जतन अब हरदम , उस कोने को सजाने का......
 
जानती हूँ तुम्हारे लिए ये,एक अजनबी सी पाती है,
है बहाना मेरे लिए ये, अकेले बैठकर मुस्कुराने का......
 
यादों के उस मंज़र से मैंने, वो इक दिन दिल में संजो लिया है,
जिस दिन मुझे मिला था कारण,जीवन अपना जीने का.......
 
 
 
 
 
 

Friday 16 March 2012

"तुम"


सोचती हूँ कभी कभी, सागर में लहरें हों जैसे ठहर गयीं,
क्यूँ मैंने ढाल दिया अपने आप को,
तुम्हारे बनाये सांचे में......


जब कहा तुमने इक बार मुझसे यूँही,
प्यार करता हूँ मैं तुमको,
मैंने भी सीख लिया प्यार करना तुम्हे.....


जब कहा तुमने इक बार मुझसे यूँही,
सुन्दर लगती हो तुम मुझको,
मैंने श्रृंगार करना सीख लिया तबसे.....


जब कहा तुमने इक बार मुझसे यूँही,
मुस्कुराती हुयी अच्छी लगती हो,
मैंने भी हँसना सीख लिया तुमसे .......


जब कहा तुमने इक बार मुझसे यूँही,
जीना चाहता हूँ साथ लेकर तुमको,
मैंने सीख लिया जीना साथ तुम्हारे....

जब कहा तुमने इक बार मुझसे यूँही,
चलो कदम से कदम मिलाकर मेरे,
मैंने भी चलना सीख लिया साथ तुम्हारे,

आज जब ढल गयी, बदल चुकी हूँ पूरी,
तुमने प्यार करना छोड़ दिया मुझे,
सुन्दर कहना भूल ही गए जैसे,
एक अरसा हुआ साथ मुस्कुराये हुए,
साथ जीना तो जैसे हम भूल ही गए,
चल पड़े हैं अकेले एक अनजान सफ़र पे, 


सोचती हूँ शिकायत करूँ या न करूँ तुमसे,
फिर यही ख्याल आता है दिल में,
ढाला तो मैंने ही है अपने आपको,
क्यूँ शिकायत करूँ मैं तुमसे,

सोचती हूँ कभी कभी, सागर में लहरें हों जैसे ठहर गयीं,
क्यूँ मैंने ढाल दिया अपने आप को,
तुम्हारे बनाये सांचे में...... 

Thursday 8 March 2012

"किताब"



मैंने जब से होश संभाला है,
एक किताब को अपने साथ पाया है,
                                        जो मुझसे बातें करती है,
                                        जो मेरे साथ ही रहती है,
कुछ पन्ने उसके पहले से लिखे हैं,
और कुछ पन्नो को मैंने लिखा है,
                                        न जाने कितने ख्वाब संजोये हैं,
                                        न जाने कितने आंसू रोये हैं,
हर ख़ुशी पे उसको सराहा है,
हर दुःख में साथ उसे ही पाया है,
                                        उस किताब के कुछ पन्ने हैं,
                                        जिनको समेतटी मैं रहती हूँ,
बिखर न जाएँ पन्ने वो,
इस बात से मैं डरती हूँ,
                                       उस किताब का नाम है "जिंदगी" .......
                                       उन्  पन्नों का नाम है "रिश्ते" ........
जिन्हें समेटना मेरी आदत बन गयी है,
और इनके बिन न रहना मेरी फितरत बन गयी है....................................

Saturday 3 March 2012

"तस्वीर"



चाँद भी लो छुप गया अब रात तनहा हो चली,
तारों की डोली भी अलविदा कहने को आतुर हो गयी.......
मैं टकटकी लगाये हुए तस्वीर कोई बनाती  रही,
दिल के पन्नो पे नाम कोई लिखती  रही मिटाती  रही.........
वह कल्पना ही तो थी मेरी जिसका  रूप मैं रचती रही,
आज तक तो बस यूँही दिल की ही मैं सुनती रही..........
अधरों ने मेरे भी नहीं चुप्पी कोई तोड़ी कभी,
हर शाम अपनी आँखों में सपना कोई बुनती रही...........
अनजान से उस शख्स के चेहरे को मैं उकेरती रही,
एक अरसा गुज़र गया उस सख्स तक न पहुँच सकी..........
वह तस्वीर मेरी कल्पना बनकर ही देखो रह गयी,
दिल में रात-दिन कोई टीस सी उठती रही.......
किताबों में रखे गुलाबों को पलट पलट कर देखती रही,
उनकी खुशबू ही जुदा उनसे अब थी हो चली.....
इक आस फिर भी है  अभी उस कल्पना तक पहुचुंगी कभी,
कभी तो उभरेगी तस्वीर कोई जो अब तलक रही मुझसे छुपी.......
दायरे असीमित हैं कल्पनाओ के सभी हंसके मैं ये कह पड़ी,
फिर भी उस भोर की ही चाह में मैं रात भर जगती रही.......
चाँद भी लो छुप गया अब रात तनहा हो चली,
तारों की डोली भी अलविदा कहने को आतुर हो गयी.......