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Tuesday 29 January 2013

"एक अनकहा प्रेम"

 "प्रिय पाठकों,पहली बार कहानी लिखने की कोशिश की है। आशा करती हूँ आपको पसंद आएगी।""

चेहरे पर चमक,बड़ी-बड़ी आँखें,कमर तक लहराते काले-घने बाल,गुलाब की पंखुड़ियों से होंठ मानो किसी चित्रकार ने बना दिए हों, चेहरे पर एक अदद मुस्कान जो उसकी पहचान थी,मध्यम कद,रूप में सादगी,आत्मविश्वास से भरा मीरा का आकर्षक व्यक्तित्व,कोई विरला ही होगा जो उसका कायल न बने।

14 वर्ष की उम्र से माँ के बिना पली-बढ़ी मीरा, घर में सबसे बड़ी होने की वजह से घर की सारी जिम्मेदारी  उसने ही उठायी थी।शायद इसी कारण से वह स्वभाव से बड़ी संयमी भी थी।
कॉलेज में जहाँ सब ग्रुप के ग्रुप बनाकर घुमते थे,उसकी सिर्फ एक ही सहेली थी, दोनों अपनी दुनिया में खोयी रहती बस।कॉलेज का कोई भी लड़का उस से बात करने से पहले 10 बार सोचता।

कॉलेज में सभी उसको उसके इस स्वभाव की वजह से घमंडी भी समझते थे।
परन्तु मीरा को इस से कोई फर्क नहीं पड़ता था,वो तो अपनी दुनिया में ही मस्त थी।

सोमवार का दिन था,घड़ी की सुइयां सुबह के 9 बजा रही थी।
मीरा अपने कॉलेज की यूनिफार्म व्यवस्थित  पहनकर बाँये हाथ में घड़ी बांधकर कॉलेज जाने की हड़बड़ी में घर से निकल चुकी थी।
मीरा बस स्टॉप पहुँचती है, कॉलेज का वक़्त होने की वजह से बसें उस समय में खचाखच भरी होती थी, सो कई बसों के निकल जाने के बाद एक बस आती है जिसमे उसे बैठने की जगह दिखाई देती है, वह उस बस में चढ़ जाती है।
बस में चढ़ते ही उसे कई  बैच मैट्स और सीनिअर्स दिखाई देते हैं, अपनी चिर परिचित मुस्कान के साथ वह सबको यथोचित अभिवादन देते हुए वह बस की सीट पर जाकर बैठ जाती है, और साथ बैठी एक लड़की (अनुपमा) से बातें करने लगती है।
(जैसा कि उसका स्वभाव है हमेशा हँसते रहने का, उसके बात करने के अंदाज़ में भी एक मुस्कान होती है।)
अचानक से उसकी नज़र सामने की सीट पर बैठे एक युवक पर जाती है,जो उसको हतप्रभ सा टकटकी लगाए देख रहा होता है।वह  देखती है कि उस युवक ने अपनी गोद में एक बड़ा सा बैग रखा हुआ है,वह हंसने में थोडा सा संयम बरतते हुए उस पर से नज़र हटाती है, परन्तु उस युवक पर कोई असर नहीं होता है ,वह उसे एकटक मुस्कुराते हुए देखता रहता है।

देखने से तो एक सभ्य युवक मालूम पड़ता था,पढ़ाकू सा।परन्तु उसके इस तरह के व्यवहार से मीरा को लगा की ये तो कोई मनचला है,और उसने कई बार उसे गुस्से में भी देखा, पर वह सिलसिला नहीं टूटा, रास्ते भर उसकी नज़रें मीरा के चेहरे पर टिकी रहीं ।कुछ उत्सुकता सी झलक रही थी उसके चेहरे पर।

अनुपमा से मीरा ने इस बात का ज़िक्र भी किया।
अंततः कॉलेज के सामने आकर बस रुकी। और सभी बस से उतरकर कॉलेज की तरफ चल पड़े, मीरा ने देखा की वह युवक उसके पीछे ही आ रहा है,उसी के कॉलेज की तरफ।
वो अनदेखा करते हुए अपनी क्लास में चली गयी।

उस दिन की क्लास ख़त्म करके मीरा शाम को अपने पीजी वापस आई तो मीरा को बस में घटी वह घटना परेशान करती रही, मानो वो चेहरा बार-बार उसके सामने आ जाता।

अगले दिन जब वह कॉलेज पहुची तो उसे अनुपमा मिली,उसने मीरा को बताया कि वो युवक जो बस में उसको घूर रहा था उसने कल ही कॉलेज में लेक्चरर का पद ज्वाइन किया है,उसका नाम हिमालय है,और वह उसकी कक्षा में एक विषय भी पढ़ाता है।
उसने मीरा को बताया कि "सर ने मुझसे यह भी पूछा कि बस में तुम्हारे साथ जो सुन्दर सी लड़की बैठी थी वो कौन थी???"
सुनकर मीरा अचंभित सी रह गयी,
अनुपमा की बात सुनते ही मीरा गुस्से में बोल पड़ती है, "अरे!! उन्हें इससे क्या करना कि मैं कौन हूँ!!! अनुपमा तुमने क्या बताया उन्हें??"
अनुपमा ने मुस्कुराकर जवाब दिया "मैंने उन्हें तुम्हारा परिचय दे दिया मीरा"
और वह वहां से चली गयी।

हिमालय- सांवला सा, चेहरे से बड़ा ही पढ़ाकू सा, मध्यम कद-काठी वाला, हमेशा पहेलियाँ बुझाता हुआ,और हंसी-मजाक करता हुआ चीयरफुल सा युवक जिसने अभी-अभी अपना ग्रेजुएशन ख़त्म किया था और लेक्चरर के पद पर मीरा के कॉलेज में किसी अन्य डिपार्टमेंट में ज्वाइन किया था।

मीरा को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वो इस बात पर अपनी नाराजगी जताए या यूँ ही जाने दे।
परन्तु इस घटना के बाद अनायास ही हिमालय का चेहरा उसके सामने आ जाता और टकटकी लगाए उसे देखने लगता, वो जैसे-तैसे उसे इगनोर करती और अपने काम में लगती।
उसके चेहरे की उत्सुकता को सुलझाने की कोशिश में उलझ चुकी थी मीरा।

2 दिन बाद जब वह कॉलेज से वापस अपने पीजी जा रही थी तो उसे ऐसा आभास हुआ जैसे कोई उसके पीछे आ रहा हो, जैसे कि क़दमों की आहट का कोई मूक संकेत हो।यूँ तो कभी उसने रास्ते में पलटकर नहीं देखा परन्तु उस दिन उसने  तुरंत पलटकर  देखा, तो करीब 40 कदम की दूरी पर हिमालय अपना बड़ा सा काले रंग का  बैग टाँगे  हुए आ रहा था।
मीरा चौंकी,फिर उसने अपने आप को संभाला और अपने रास्ते पर चल दी,सहमी हुयी सी मीरा चलती रही।अपने पीजी के तरफ मुड़ते हुए मीरा ने एक बार फिर पलटकर देखा,हिमालय अभी भी पीछे आ रहा था,वह मीरा को देखकर मुस्कुराया भी,पर मीरा पलटकर चल दी।
मीरा अपने पीजी की तरफ मुड़ गयी और हिमालय मुस्कुराता हुआ सीधे निकल गया।

रात भर मीरा के मस्तिष्क में हिमालय के ख़याल उधेड़-बन मचाते रहे।

अगले दिन मीरा ने कॉलेज में यह बात अनुपमा को बताई और दोनों अपनी-अपनी क्लास में चली गयी।
बातों ही बातों में लैब में अनुपमा ने हिमालय से पूछ लिया कि कल आप मीरा की कॉलोनी में क्यूँ गए थे,तब हिमालय ने अनुपमा को बताया कि उसने उसी कॉलोनी के पीछे वाली बिल्डिंग में घर किराए से लिया है।
(हिमालय का घर वर्तमान शहर से दूर किसी अन्य शहर में होने की वजह से अप-डाउन करना मुश्किल था।)

बस एक सिलसिला सा चल पड़ा दोनों के बीच (मीरा और हिमालय),मीरा रोज़ सुबह अपने कॉलेज के लिए निकलती और हिमालय की बिल्डिंग की ओर पलटकर जरुर देखती।
हिमालय रोज़ कॉलेज के प्रवेश द्वार पर मीरा को खड़ा मिलता,और मीरा को देखकर अपने डिपार्टमेंट की बिल्डिंग में चला जाता,एक अजीब सा आकर्षण पनपने लगा था दोनों के बीच।
जैसे ही अपने लेक्चर्स से हिमालय को समय मिलता वह मीरा की क्लास की बिल्डिंग की तरफ मुह कर उसके दिखने का इंतज़ार करता रहता।
मीरा अक्सर अपनी सहेली के साथ कैन्टीन जाया करती थी, हिमालय पता नहीं कहाँ से उसके कैंटीन में पहुँचने की जानकारी पा जाता और पहुँच जाता अकेला ही कैंटीन में,बैठ जाता मीरा के सामने वाली टेबल पर अपनी चाय का कप रखकर टकटकी लगाये उसे देखता रहता।
मीरा भी कभी-कभी उसके इस पागलपन पर मुस्कुरा देती।

शाम को जब मीरा बस से उतरती तो हिमालय रोज़ उसे बस स्टॉप पर बनी चाय की दुकान पर खड़ा मिलता,दोनों एक दुसरे को देखते और मीरा के निकलते ही वह उसके पीछे निकल पड़ता अपने घर के लिए।
रोज़ का सिलसिला बन चुका था यह अब।
किसी न किसी बहाने से वह मीरा के सामने आ जाता।

"प्यार से दूर रही मीरा को आभास होने लगा,जैसे कोई उसके प्यार की दुनिया के सूनेपन को ख़त्म करने के लिए दरवाज़ा खटखटा रहा हो।"

कई महीने इसी तरह गुज़र गए,पर कभी आपस में बात तक नहीं की दोनों ने।

स्वभाव से कठोर लगने वाली मीरा मानो हिमालय के लिए दिन-ब-दिन पिघलती हुयी सी दिखाई दे रही थी।
मीरा की सहेली और हिमालय के डिपार्टमेंट के कुछ लोग तक इस बात को भांप गए थे,और एक दुसरे के  नाम से दोनों को चिढाने लगे थे।

मीरा के मन में हिमालय के प्यार का अंकुर प्रस्फुटित हो चुका था, उसे बस इंतजार था तो हिमालय के इकरार का।मीरा ने अपने प्यार की दुनिया में सपनो के महल बनाना शुरू कर दिए थे।

"शायद हिमालय एक शिक्षक होने के नाते अपने और मीरा के बीच पुल बनाने में अपने आप को असहाय महसूस कर रहा था।कई बार उसने यह बात अप्रत्यक्ष रूप से जताने की कोशिश भी की,परन्तु मीरा और हिमालय के बीच के उस रिश्ते को प्यार के पुल से जोड़ना उतना भी सरल नहीं था।"

एक दिन जब मीरा और अनुपमा साथ में कॉलेज से निकल रहे थे,अचानक से हिमालय उनके सामने आ गया,और दोनों के हाथ में चॉकलेट थमाते हुए बोला कि मेरा "गवरमेंट जॉब" लग गया है,और यह खबर सबसे पहले मैंने आपको दी है।
अनुपमा ने तुरंत हिमालय को इस बात के लिए बधाई दी,पर मीरा बस हिमालय का चेहरा तकती रह गई।और हिमालय वहां से मुस्कुराता हुआ चला गया।उस दिन हिमालय की उस मुस्कराहट में मीरा ने उसकी आँखों में आंसू महसूस किये,जो कह रहे थे मीरा से कि "अब हम शायद जुदा हो जाएँ".....

यह बात कहते वक़्त हिमालय की नज़रें मीरा की तरफ थी,जबकि उसकी बात अनुपमा से ज्यादा होती थी।अनुपमा तुरंत भांप गयी कि यह बात हिमालय मीरा से कहना चाहता है,उसने मीरा से पूछा -"क्या मैं सर से पूछूं,कि आखिर वो क्या चाहते हैं,क्यूँ वो तुम्हारी उलझन दूर नहीं करते?????"
मीरा ने अनुपमा को जवाब दिया-"अनुपमा अगर उन्हें कुछ कहना होता तो वो कह देते,पर शायद वो कुछ कहना ही नहीं चाहते।"

दोनों अपने-अपने रस्ते चली गयीं।

अब जब भी मीरा और हिमालय एक दुसरे के सामने आते,न जाने क्यूँ उदास से हो जाते।
कुछ कह नहीं पाने का कड़वा घूँट पीते हर बार ,पर कुछ कह नहीं पाते एक दुसरे से,बस आँखें सब कहानी कह देतीं।

मीरा को डर सताने लगा कि इतने सालों के इंतज़ार के बाद उसकी जिंदगी में आये प्यार को वो खो न दे कहीं।
उसने कई बार हिमालय के हाथों में मोबाइल फ़ोन देखा था।
कहीं से पैसों की व्यवस्था कर मीरा ने एक मोबाइल फ़ोन खरीदा(उस समय मोबाइल फ़ोन और कॉल रेट्स बहुत महंगे हुआ करते थे )
हिमालय ने उसके हाथों में मोबाइल देखा और अगले ही दिन बातों-बातों में अनुपमा से उसका नंबर भी मांग लिया।

अनुपमा ने यह बात जाकर मीरा को बताई,मीरा के चेहरे पर एक मुस्कराहट आई,और अब मीरा हिमालय के फ़ोन का इंतज़ार करने लगी।

2 हफ्ते बीत गए,कोई फ़ोन नहीं आया।मीराअब समझ गयी कि हिमालय उससे कुछ कहना नहीं चाहता।
मीरा निराश हो चली थी।
अनुपमा ने मीरा को समझाया कि "शायद हिमालय एक शिक्षक होने के नाते कुछ भी कह पाने में अपने आप को असहाय महसूस कर रहा होगा,ज़रूर वह किसी न किसी दिन तुम्हारे सामने आएगा मीरा।"

परन्तु मीरा की बैचेनी बढती ही जा रही थी,उसके मन में कई प्रकार के ख़याल आने लगे थे,जिनमे हिमालय को खो देने का डर था।

कई बार मीरा और हिमालय का आमना-सामना हुआ,दोनों के चेहरे उदास और आँखें बातें करती हुयी .....हर बार एक  दुसरे से सवाल करती रहती बस,लगता जैसे शब्द होंठों तक आते-आते रुक जाते हों।

हिमालय ने किसी को भी कॉलेज में अपने लास्ट डे के बारे में नहीं बताया था।

एक दिन अनुपमा ने अचानक से मीरा को खबर सुनाई कि हिमालय ने कॉलेज छोड़ दिया है,मीरा के पैरों तले मानो ज़मीन खिसक गयी हो उस दिन।
हंसती-खिलखिलाती मीरा उदासी के अंधेरों में खोने लगी,हर दिन उसके लिए एक बोझ सा हो गया।

बस घंटों फ़ोन को हाथों में ले उसकी तरफ ताकती रहती,पता नहीं क्यूँ उसे अभी भी इंतज़ार था हिमालय का।
अनुपमा उसे रोज़ समझाती,कहती- "क्या हालत बना ली है तूने अपनी???? वो नहीं आएगा, अगर उसे तुझसे कोई मतलब होता तो वो तुझे यूँ परेशान नहीं देख सकता था।"

मीरा चुपचाप सुन लेती पर उसके मन ने अभी आस नहीं छोड़ी थी।

एक दिन अचानक मीरा के फ़ोन पर एक मिस्ड कॉल आई।
मीरा ने तुरंत उस नंबर पर मेसेज करके पूछा "कौन??"
जवाब नहीं आया कोई।

मीरा ने 2 दिन इंतज़ार किया।कोई फ़ोन नहीं आया।
बैचेन मीरा ने उस नंबर पर फ़ोन करके पता लगाने की कोशिश की,एक युवक ने फ़ोन उठाया।पर कुछ पता नहीं पड़ा।

फिर उसने अनुपमा से कहा कि वह उस नंबर पर बात करे,और आवाज़ पहचानने की कोशिश करे।
अनुपमा राजी हो गयी,मीरा ने उस नंबर पर कॉल लगायी,और अनुपमा को फ़ोन दे दिया।

अनुपमा झट से आवाज़ पहचान गयी, फ़ोन डिसकनेक्ट करके कहने लगी-"यह तो हिमालय सर की आवाज़ है मीरा।"

मीरा बहुत खुश हो गयी,बस फ़ोन पर बातें होने लगीं।
न कभी उस युवक ने कहा कि  वह हिमालय है,और न कभी मीरा ने अपना नाम बताया।

दोनों एक दुसरे को अपनी अपनी पहचान जताने की कोशिश  इशारों-इशारों में करते।ये सिलसिला 2 महीनो तक चलता रहा।
दोनों में कई तरह की बातें हुयी।एक दिन दोनों ने मिलने का प्लान बना ही लिया।मीरा ने अपने घर के पास एक जगह पर मिलने के लिए उसे बुलाया।
मीरा बहुत हिम्मत करके उस से मिलने पहुची।

उसकी आँखों को बस हिमालय का इंतज़ार था।वो सड़क के किनारे बने एक बस स्टॉप पर सहमी सी खड़ी-खड़ी हिमालय की राह ताकने लगी।

काफी देर हो गयी,जब उसे हिमालय कहीं पर भी नज़र नहीं आया तो मीरा ने उसे कॉल किया।
तब उस युवक ने बताया की वह लाल रंग की बाइक पर ब्लू चेक्स की शर्ट में उसके सामने खड़ा है।

जैसे ही मीरा की नज़र उस युवक पर पड़ी,मीरा के सपने उसी बस स्टॉप पर चकनाचूर हो गए।
मीरा की आँखों में आंसू भर आये,और वह तेज़ बढ़ते हुए क़दमों से अपने पीजी की और जाने वाली बस में बैठ गयी।

रास्ते भर गुमसुम सी मीरा अपने साथ हुए इस छल को समझ नहीं पायी,पर अन्दर तक टूट चुकी थी वो।
वहां उस से मिलने हिमालय नहीं,कोई और आया था," अमर " नाम था उसका।

काफी दिनों तक उस युवक से मीरा ने दूरी बनाकर रखनी चाही,पर हिमालय को ढूंढ निकालने और उसके मन की बात जानने का नशा मीरा के सर चढ़ चुका था,इस उलझन ने मीरा की दुनिया ही बदल बदल थी।मीरा के कई बार पूछने पर भी अमर ने जवाब दिया की वह हिमालय को जानता तक नहीं है। इस उलझन को सुलझाते हुए वह अमर के इतने करीब आ चुकी थी अब कि उसका पीछे जाना मुश्किल हो चुका था।मीरा और अमर एक दुसरे को काफी जान चुके थे।

एक दिन अमर ने मीरा से अपने प्यार का इज़हार कर दिया।
अमर एक अच्छा लड़का था,देखने में काफी सुन्दर-सुडौल और मीरा के समकक्ष पढ़ा-लिखा भी।
मीरा हिमालय की जगह अमर को स्वीकार कर नहीं पा रही थी।

उसने हाँ नहीं किया।
दोनों का मिलना-जुलना चलता रहा और दोनों की नजदीकियां भी बढती गयीं।

कुछ समय गुज़रा,दोनों ने जॉब ढूंढ घरवालों की मर्ज़ी शामिल कर शादी कर ली और घर बसा लिया।

पर हिमालय आज भी मीरा के लिए एक उलझन है,चाहकर भी मीरा नहीं भूल पायी उसे।
आज भी यदा-कद वह मुस्कुराता हुआ,टकटकी लगाया हुआ चेहरा उसकी आँखों के सामने आ जाता है। और वो खो जाती है उस अनसुलझी उलझन में फिर से।
मन की उड़ान को समझ पाना बहुत मुश्किल है,कभी-कभी यह खुद भी नहीं समझ पाता कि ये चाहता क्या है!!
मीरा इसे अपने साथ एक धोखा समझती रही,पर उसके कोमल मन पर हिमालय की छाप अब अनमिट थी।

Thursday 10 January 2013

वो प्रकाशमय क्षण

न जाने कितने शब्द नृत्य करने लगते हैं मष्तिष्क में ,
जब देखती हूँ घने कोहरे के बाद फैली धूप चारों ओर।
आँगन में छिटकी ये धूप ,अनुभूति कराती है मुझे .....
तुम्हारे पास होने का ....

जब मैं उन्मुक्त पंछी सी,
तुम्हारे खुले और स्वच्छ आकाश की तरह,
फैले बाजुओं में आ छिप जाती थी ,
सुरक्षित महसूस करती थी अपने आप को वहां।

तुम्हारे उस निर्मल आकाश में फैली धूप के उजियार से,
चमक उठता था कण-कण मेरा,
विचार शून्य हो जाता था मस्तिष्क,
मानो सारी चिंताओं से मुक्त हूँ।

बस आज उस गुनगुनी धूप ने बरसों बाद,
मेरे स्मृति पटल पर अंकित,
जीवंत कर दिए वो प्रकाशमय क्षण,
जो बहते हैं प्रकाशवान एक नदी की तरह सदा ही मुझमे .....