पलट पलट कर जब भी देखा है तुझे...
हर रंग में मुझे तू दिखी जिंदगी....
कभी हंसती हुयी....
कभी सिसकती हुयी.....
सिमटी हुयी ज़ज्बातों में कहीं....
कभी ठिठुरती हुयी रिश्तों की सीली सर्द हवाओं में...
तो जलती हुयी ख्वाहिशों की तपिश में कहीं...
बिखरती हुयी हालातों में कहीं...
कभी बहारों में संवरती हुयी....
कभी ख़्वाबों की दुनिया में उडती हुयी..
कभी मचलती हुयी अदाओं में भी देखा है तुझे...
और कभी बहते हुए पानी सी लगी है तू....
मेरे साथ है तू ही इस सफ़र में,अनजान से इस शहर में....
जहाँ अपने भी अजनबी लगते हैं,और हमसाए भी झूठे दिखते हैं....
इस तलाश में... इस ख़ामोशी की आवाज़ में... जो आती तो है लबों तक पर सुनाई नहीं देती... तू ही तो है मेरी संगिनी...
ऐ जिंदगी... ऐ जिंदगी....