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Wednesday 4 April 2012

"विश्वास"

 
इसे प्यार कहूं,लगाव कहूं,या कहूँ तुम्हारा अपनापन,
पल पल मुझको जो अहसास तुम्हारा रहता है,
तुम नहीं थे मेरे साथ कभी और ना ही होगे साथ कभी, 
साथ तुम्हारे होने का विश्वास मगर है साथ मेरे,
 
तुम्हारे आने के पहले तो कभी,तुम्हारा इंतज़ार नहीं था,
और तुम्हारे जाने के बाद,तुम्हारा इंतज़ार ही बस अब साथ है,
पता नहीं क्यूँ तुम मेरी,आदत सी बन गए हो अब तो,
जिस पल  न हो अहसास तुम्हारा,भीड़ में भी लगती तनहाई है,
 
कभी कभी बेनाम से रिश्ते जीने का मकसद होते हैं,
चाहे न हो साथ कभी पर साथ में अकसर होते हैं.....
 
तुमने वैसे तो कोई वादा नहीं किया मुझसे,
पर न जाने मुझे किस वादे की तलाश है,
पता है मुझको तुम वापस नहीं आओगे,
पर फिर भी दिल में आस है,एक विश्वास है.....
एक विश्वास है......
 
मेरे लिए एक ऐसी मरीचिका हो तुम,
जिसका आभास  मुझे अब प्यारा है,
जीवन का अनमिट पहलू है ये,
जो मेरे लिए दूर का तारा है.......
 
 
पर फिर भी दिल में आस है,एक विश्वास है.....
एक विश्वास है......

12 comments:

  1. विश्वास पर ही तो सृष्टि कायम है...............
    यही अटूट विश्वास ऊर्जा देता है हमे जीने की.....विपरीत परिस्थितियों में....
    कभी कभी बेनाम से रिश्ते जीने का मकसद होते हैं,
    चाहे न हो साथ कभी पर साथ में अकसर होते हैं.....
    बहुत प्यारी अभिव्यक्ति मिनाक्षी.

    ढेर सा प्यार!!

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद सराहना के लिए.....

      आपके स्नेह की सदा आभारी
      मिनाक्षी

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  2. minakshi ji,

    pahli baar aapke blog par aaya rachna padkar achchha laga

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  3. बहुत सार्थक रचना है
    .......मेरा ब्लॉग ज्वाइन करने के लिए बहुत बहुत आभार

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  4. सुन्दर सृजन , बेहतरीन भावाभिव्यक्ति.

    मेरे ब्लॉग" meri kavitayen" पर भी पधारें, आभारी होऊंगा .

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    Replies
    1. धन्यवाद बहुत बहुत ...:)

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  5. आशा बनाये रखें ....
    शुभकामनायें !

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