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Thursday, 27 February 2014

टुकड़े

सब कुछ साबुत जब दिखता है ऊपर से ,
बहुत कुछ टूटा होता है अन्दर !!

कई टुकड़े ......
स्व-अस्तित्व के,
स्वाभिमान के,
क्षत-विक्षत भावनाओं के,
अपनों ही की- ईर्ष्या के,
और उन पैने शब्दों के,
जिनका विष नष्ट नहीं होता कभी ...... !!

हाथ डालकर टटोलते हुए,
चुभ जाती हैं पैनी नोंकें कई बार,
उन टुकड़ों की जो बिखरे हैं ,
और लहुलुहान कर जाती हैं मन !!

बाहर सब साबुत होता है !!

Wednesday, 19 February 2014

रिश्तों का बीज



बीज ... समाये हुए अपने अन्दर !!
एक हरी-भरी दुनिया,
किसी परिंदे का घर,
किसी फूल की खुशबू,
हवाओं की ताजगी,
और कई सूखी आँखों के लिए हरेपन का सुकून !!

बढ़ने को ,पलने को .....
ज़रूरी है उसको नमी और धूप,
जबकि जीजिविषा हो उसमे,
पनपने की,बढ़ने की,लहलहाने की ,
वरना सुखा देगी वो धूप उसे,
सड़ा देगी नमी उसको ..... !!

रिश्तों का इक बीज बोने को,
नमी की कोई कमी न रखी,
ऊंची-ऊंची खूंटियों पे टाँगे रखा कई बार,
कि दीवार के उस ओर से आये कोई कतरा,
तेरी धूप का कभी !!
पर तेरी दीवारें तो,
मेरी उन ऊंची खूंटियों से भी ऊंची हो चुकी हैं !!

सीले से उस रिश्ते के बीज को,
ठंडी हवाएं कभी-कभी आकर सताती हैं,
ठहाके लगाती हैं उसे देखकर,
और कहती हैं,
देख .... तू हार गया इस दुनिया से ,
जहाँ रिश्ते ही रिश्तों को मारते हैं !!


Saturday, 8 February 2014

झल्ली


- चित्र गूगल से साभार 
जानता था !!

वो जीती है ख़्वाबों में,
उंघती हुयी अधनींदी सी ...
ख्यालों में बनाती है,

बादलों के महल ....
प्यार की मखमल के,
होते हैं परदे उस महल के .....

मुरझाने वाले असली फूलों को,
जिंदगी समझती है वो ....
एक दिया जलता रहता है,
राह तकता हुआ सा हमेशा ......

और दरवाज़े खुले होते हैं हमेशा,
उसके इंतज़ार में ....... 

चाँद उसे दीवाना लगता है ,
और तारों को वो गिनती रहती है ......  
झल्ली है वो ..... !!
जो ये भी नहीं जानती .... ये दुनिया उसकी अपनी सजाई हुयी है ..... !!
मैं उस दुनिया का हूँ ही नहीं ..... !!