सब कुछ साबुत जब दिखता है ऊपर से ,
बहुत कुछ टूटा होता है अन्दर !!
कई टुकड़े ......
स्व-अस्तित्व के,
स्वाभिमान के,
क्षत-विक्षत भावनाओं के,
अपनों ही की- ईर्ष्या के,
और उन पैने शब्दों के,
जिनका विष नष्ट नहीं होता कभी ...... !!
हाथ डालकर टटोलते हुए,
चुभ जाती हैं पैनी नोंकें कई बार,
उन टुकड़ों की जो बिखरे हैं ,
और लहुलुहान कर जाती हैं मन !!
बाहर सब साबुत होता है !!
बहुत कुछ टूटा होता है अन्दर !!
कई टुकड़े ......
स्व-अस्तित्व के,
स्वाभिमान के,
क्षत-विक्षत भावनाओं के,
अपनों ही की- ईर्ष्या के,
और उन पैने शब्दों के,
जिनका विष नष्ट नहीं होता कभी ...... !!
हाथ डालकर टटोलते हुए,
चुभ जाती हैं पैनी नोंकें कई बार,
उन टुकड़ों की जो बिखरे हैं ,
और लहुलुहान कर जाती हैं मन !!
बाहर सब साबुत होता है !!
सही कहा.....
ReplyDeleteभीतर सब दरका होता है...और किरचें चुभती हैं.
कोमल और मन को छूती पंक्तियाँ !!
सस्नेह
अनु
<3
Deleteबाह्य और अंतर में कोई समानता नहीं होती … जब हम ऊपर से सहज दिखते हैं, उसी समय अंदर की सुनामी में सबकुछ बहता जाता है … बाह्य परिस्थिति की माँग होती है, पर मन, वह अपना होता है और सच से परे नहीं हो पाता
ReplyDelete<3
Deleteसहज, सरल शब्दों में लिखी मन को छू जाने वाली सुन्दर पंक्तियों के लिए हार्दिक बधाई...|
ReplyDeleteबहुत मर्म स्पर्शी लिखा है !
ReplyDeleteशुक्रिया :)
Deleteसब कुछ साबुत जब दिखता है ऊपर से ,
ReplyDeleteबहुत कुछ टूटा होता है अन्दर !!
.......पहले से ही नम मन और भी नम हो गया ,बहुत अच्छा और बहुत सच्चा लिखा है .....
आभार निवेदिता जी
Deleteसुन्दर भावाभिव्यक्ति...कविता कवि के अंतर्मन की अभिव्यक्ति होती है...
ReplyDeleteसच जैसा ऊपर से दीखता है वैसा हो यह जरुरी नहीं ..और आज के समय में तो बहुत कठिन हैं यह सब ..
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
मर्म भेदी ... सच्ची कविता
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteHi Meenakshi ji,
ReplyDeleteVery nice poem. I have started a new Hindi blog called Dainik Blogger (http://dainikblogger.blogspot.in/). Please visit and post your valuable suggestions or comments.
Thanks
Ayaan