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Thursday 27 February 2014

टुकड़े

सब कुछ साबुत जब दिखता है ऊपर से ,
बहुत कुछ टूटा होता है अन्दर !!

कई टुकड़े ......
स्व-अस्तित्व के,
स्वाभिमान के,
क्षत-विक्षत भावनाओं के,
अपनों ही की- ईर्ष्या के,
और उन पैने शब्दों के,
जिनका विष नष्ट नहीं होता कभी ...... !!

हाथ डालकर टटोलते हुए,
चुभ जाती हैं पैनी नोंकें कई बार,
उन टुकड़ों की जो बिखरे हैं ,
और लहुलुहान कर जाती हैं मन !!

बाहर सब साबुत होता है !!

14 comments:

  1. सही कहा.....
    भीतर सब दरका होता है...और किरचें चुभती हैं.
    कोमल और मन को छूती पंक्तियाँ !!

    सस्नेह
    अनु

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  2. बाह्य और अंतर में कोई समानता नहीं होती … जब हम ऊपर से सहज दिखते हैं, उसी समय अंदर की सुनामी में सबकुछ बहता जाता है … बाह्य परिस्थिति की माँग होती है, पर मन, वह अपना होता है और सच से परे नहीं हो पाता

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  3. सहज, सरल शब्दों में लिखी मन को छू जाने वाली सुन्दर पंक्तियों के लिए हार्दिक बधाई...|

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  4. बहुत मर्म स्पर्शी लिखा है !

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  5. सब कुछ साबुत जब दिखता है ऊपर से ,
    बहुत कुछ टूटा होता है अन्दर !!

    .......पहले से ही नम मन और भी नम हो गया ,बहुत अच्छा और बहुत सच्चा लिखा है .....

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  6. सुन्दर भावाभिव्यक्ति...कविता कवि के अंतर्मन की अभिव्यक्ति होती है...

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  7. सच जैसा ऊपर से दीखता है वैसा हो यह जरुरी नहीं ..और आज के समय में तो बहुत कठिन हैं यह सब ..
    बहुत बढ़िया

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  8. मर्म भेदी ... सच्ची कविता

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  9. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

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  10. Hi Meenakshi ji,

    Very nice poem. I have started a new Hindi blog called Dainik Blogger (http://dainikblogger.blogspot.in/). Please visit and post your valuable suggestions or comments.

    Thanks
    Ayaan

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