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Sunday, 28 April 2013

"प्रगतिपथ"


चलता जा प्रगति पथ पर तू,
कंटक पथ के पुष्प बनेंगे।।

धूप जो तुझको चुभ रही है आज,
कल छाया स्वयं आकाश बनेगा।।

कंठ जो तेरा सूख रहा आज,
नदियाँ कल तू ले आएगा।।

उठ अब प्रण कर ले तू शपथ,
मार्ग न कोई अवरुद्ध कर पायेगा।।

देख !!

मनोबल न गिर पाए तेरा ,
तू स्वयं ही अपना संबल बनेगा ।।


Saturday, 27 April 2013






चटकीली  धूप, और गर्म  हवा के झोंकों  के बीच ,
अगर कुछ  भाता है तो  वो है,
मोगरे  को  छूकर आती हुयी,
सुबह-शाम की ठंडी हवा।।

जब भी स्पर्श करती हुयी गुज़रती  है,
मेरे करीब से,  
भूल जाती हूँ !!
तुम्हारी दी हुयी हर उलाहना ,
और खो जाती हूँ,
उस मदमस्त हवा की मस्ती में।।

सुन ऐ मोगरे !!
जल्दी-जल्दी आया कर,
मेरे बाग़ में।।