चटकीली धूप, और गर्म हवा के झोंकों के बीच ,
अगर कुछ भाता है तो वो है,
मोगरे को छूकर आती हुयी,
सुबह-शाम की ठंडी हवा।।
जब भी स्पर्श करती हुयी गुज़रती है,
मेरे करीब से,
भूल जाती हूँ !!
तुम्हारी दी हुयी हर उलाहना ,
और खो जाती हूँ,
उस मदमस्त हवा की मस्ती में।।
सुन ऐ मोगरे !!
जल्दी-जल्दी आया कर,
मेरे बाग़ में।।
मोगरा तो गर्मियों गर्मियों ही आएगा...मगर आँगन महकेगा बारों महीने......तुझसे प्यार हो गया है खुशबु को!!!
ReplyDeleteप्यार!!
अनु
कुछ तो ऐसा हो जो मन प्रसन्न कर दे और सारे दुःख दर्द मिटा दे.
ReplyDeleteसुंदर भाव लिये कविता.
अच्छी रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर
बहुत सुंदर कविता, मोगरे को बुलाने वाली पंक्ति ने चार चांद लगा दिये रचना में. बहुत शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामारम
you are invited to follow my blog
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत अच्छा भाव लिए रचना
ReplyDeleteडैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
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सुंदर रचना मन को छूती हुई
ReplyDeleteबधाई
उत्कृष्ट प्रस्तुति
विचार कीं अपेक्षा
आग्रह है मेरे ब्लॉग का अनुसरण करें
jyoti-khare.blogspot.in
कहाँ खड़ा है आज का मजदूर------?