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Friday 16 November 2012

"रूठे शब्द"

रूठे-रूठे अनमने से शब्दों को,
संजोने का साहस कहाँ से लाऊं।।

शुष्क जो अब हो चला है,
आँखों का तैरता पानी भी,
मन को छू जाए जो सबकी,
वो वेदना मैं कहाँ से लाऊं।।
शब्द जो रूठे हुए हैं,उनको कैसे मैं मनाऊं।

बिखरे-बिखरे से ख्यालों को,
बटोरना आसान नहीं है,
फिर भी कोशिश करता है मन,
कुछ तो आज समेटा जाए।।
शब्द जो रूठे हुए हैं,उनको कैसे मैं मनाऊं।

तिनका-तिनका जोड़कर,
जो नीड़ बनाया था कहीं,
आँधियों के कोप से तितर-बितर हो गया,
उसको फिर कैसे बनाऊं।।
शब्द जो रूठे हुए हैं,उनको कैसे मैं मनाऊं।

रूठे-रूठे अनमने से शब्दों को,
संजोने का साहस कहाँ से लाऊं।।

8 comments:

  1. बहुत गजब की प्रस्तुती ........

    बधाई स्वीकारें !!


    आपके ब्लॉग पर आकर काफी अच्छा लगा।मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत हैं।अगर आपको अच्छा लगे तो मेरे ब्लॉग से भी जुड़ें।धन्यवाद !!

    http://rohitasghorela.blogspot.in/2012/11/blog-post_6.html

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  2. नीड़ का निर्माण दुष्कर ,मत हो तू हतप्राण
    बाधा विविध ,तू एकला चल ,है झेलना तुझे कटु बाण

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  3. मन को छू जाए जो सबकी
    वो वेदना मैं कहाँ से लाऊं
    शब्द जो रूठें हैं उनको कैसे मैं मनाऊं-----------बहुत ही सुंदर मिनाक्षी जी ।

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  4. शब्द जो रूठे हुए हैं,उनको कैसे मैं मनाऊं।...shbad maan jaayenge ..bahut sahi byaan hai ...

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  5. शुष्क जो अब हो चला है,
    आँखों का तैरता पानी भी,
    मन को छू जाए जो सबकी,
    वो वेदना मैं कहाँ से लाऊं।।
    शब्द जो रूठे हुए हैं,उनको कैसे मैं मनाऊं।

    अनकही सी व्यथा .....खूबसूरती से उकेरी है ......!!
    सुंदर रचना ....मीनक्षी जी .....!!

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  6. इतनी सुंदर कविताएं कई बार रूठे हुए शब्दों को मना लाती हैं।।।
    सुंदर प्रस्तुति।।

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  7. वाह बहुत खूब ...शब्द रूठ कर जाएँगे कहाँ :)

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