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Sunday, 16 December 2012

"ठिठुरता मन"


भीगा आँचल,सीला सा मन,
दृग अश्रु-गागर  भरमाये।।
धूप की प्रतीक्षा करते-करते,
सांझ की देहली पार कर आये।।
ठिठुरेगा मन आज भी यूँ ही,
दुःख के बादल हैं जो छाये।।
ढलता दिन कह रहा है तुझसे,
ओढ़ ले तू भी मिथ्या के साए।।
जीवन पथ ये कंटकमय है,
नीरव बस तू चलता जाए।।
आह जो निकली मन से तेरे,
जग तुझपे ही हसेगा कल को।।
उत्तरदायित्व वहन करने हैं तुझे तेरे,
प्रण कर उस पथ अग्रसर हो जा मन।।

3 comments:

  1. वाह बहुत खूब .. भावपूर्ण

    मेरी नई कविता आपके इंतज़ार में है: नम मौसम, भीगी जमीं ..

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  2. देख कर बाधा विविध बहु विघ्न घबराते नहीं. कविता बहुत सुन्दर है .

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