जाओ !!
आज नहीं करनी बात तुमसे,
रोज़ तो करती हूँ,
आज नाराज़ हूँ तुमसे मैं,
ना जाने क्यूँ,
देखो तो दुपहरी चढ़ आई है,
पर मन नहीं तुमसे बात करने का,
नहीं जलाया तुम्हारे मंदिर मे दिया भी आज,
जिसके बिना दिन अधूरा सा लगता है मुझे,
और तुम निष्ठुर,
आये मुझसे बात करने ????
भगवान हो न तुम !!
क्या तुम्हें ही नाराज़ होने का हक है????
क्यूँ मैं ही हमेशा मनाऊं तुम्हें ?????
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लो !!
मना ही लिया आखिर तुमने ,
बुला लिया घर अपने मुझको ,
भूल गयी सारी नाराज़गी ,
जैसे ही सुगंधित वातावरण ने घेरा मुझको,
मिश्री घुल गयी कानों में,
सुनकर वो आरती का शंखनाद,
तुमसे भी कोई नाराज़ हो सकता है भला !!
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आज नहीं करनी बात तुमसे,
रोज़ तो करती हूँ,
आज नाराज़ हूँ तुमसे मैं,
ना जाने क्यूँ,
देखो तो दुपहरी चढ़ आई है,
पर मन नहीं तुमसे बात करने का,
नहीं जलाया तुम्हारे मंदिर मे दिया भी आज,
जिसके बिना दिन अधूरा सा लगता है मुझे,
और तुम निष्ठुर,
आये मुझसे बात करने ????
भगवान हो न तुम !!
क्या तुम्हें ही नाराज़ होने का हक है????
क्यूँ मैं ही हमेशा मनाऊं तुम्हें ?????
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लो !!
मना ही लिया आखिर तुमने ,
बुला लिया घर अपने मुझको ,
भूल गयी सारी नाराज़गी ,
जैसे ही सुगंधित वातावरण ने घेरा मुझको,
मिश्री घुल गयी कानों में,
सुनकर वो आरती का शंखनाद,
तुमसे भी कोई नाराज़ हो सकता है भला !!
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बहुत सुन्दर |
ReplyDeleteTamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति शुक्रवारीय ब्लॉग बुलेटिन पर |
ReplyDeleteजी सच है
ReplyDeleteये तो वाकई बड़ा सवाल है..
अच्छी रचना
बहुत सुंदर प्रस्तुति मीनाक्षी जी |
ReplyDeleteक्या तेवर हैं। क्या बात है!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और भावपूर्ण.
ReplyDeleteनीरज'नीर'
मेरे ब्लॉग पर भी आपका स्वागत है.
KAVYA SUDHA (काव्य सुधा)
sundar bahut hi sundar....
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