स्वरों को अब त्वरित कर दो,
वेग उनमे ऐसा भर दो,
मार्ग न अवरुद्ध कोई,
कपटी कर पाए जो उनका ....
ज्वाला अब जो जल उठी है,
हर ह्रदय में उष्णता हो,
स्वप्न कुंदन से तपें अब,
निखर आये रूप उनका ....
बढ़ो आगे चल पड़ो अब ,
कोई कोना रह न जाए,
शाप का अब अंत कर दो,
अंश कोई रह न जाए .....
विषाक्त वृक्ष कट चुका है,
ठूंठ अब शेष रह गया है ....
ठूंठ को निर्बल न समझो,
कोई कोपल आ न जाए .....
जड़ों का अब अंत कर दो,
विषवमन अब कर न पाए ,
उर्जा का अब संचरण हो,
चहुँ ओर प्रसार अनंत कर दो ....
विषाक्त वृक्ष कट चुका है,
ReplyDeleteठूंठ अब शेष रह गया है ....
ठूंठ को निर्बल न समझो,
कोई कोपल आ न जाए .....
अच्छी रचना, सुंदर भाव
होली की शुभकामनाएं
bhavpurn rachna ,holi ki hardik shubhkamna .
ReplyDeletebahut sundar rachanaa ... :)
ReplyDeleteकिसान और सियासत
दिनकर की आत्मा समां गई है . बहुत प्रेरणादायक . वाह
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteविषाक्त वृक्ष कट चुका है,
ReplyDeleteठूंठ अब शेष रह गया है ....
ठूंठ को निर्बल न समझो,
कोई कोपल आ न जाए ....bahut sundar
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बहुत प्रेरणादायक
ReplyDeleteबहुत-बहुत आभार आपका
ReplyDelete"तुषार राज रस्तोगी जी "
सादर