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Sunday, 24 March 2013

"बढ़ चलो"


स्वरों को अब त्वरित कर दो,
वेग उनमे ऐसा भर दो,
मार्ग न अवरुद्ध कोई,
कपटी कर पाए जो उनका ....


ज्वाला अब जो जल उठी है,
हर ह्रदय में उष्णता हो,
स्वप्न कुंदन से तपें अब,
निखर आये रूप उनका ....


बढ़ो आगे चल पड़ो अब ,
कोई कोना रह न जाए,
शाप का अब अंत कर दो,
अंश कोई रह न जाए .....


विषाक्त वृक्ष कट चुका  है,
ठूंठ अब  शेष रह गया है ....
ठूंठ को निर्बल न समझो,
कोई  कोपल आ  न जाए .....


जड़ों का अब अंत कर दो,
विषवमन अब कर न पाए ,
उर्जा का अब संचरण हो,
चहुँ ओर प्रसार अनंत कर दो ....


8 comments:

  1. विषाक्त वृक्ष कट चुका है,
    ठूंठ अब शेष रह गया है ....
    ठूंठ को निर्बल न समझो,
    कोई कोपल आ न जाए .....


    अच्छी रचना, सुंदर भाव
    होली की शुभकामनाएं

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  2. दिनकर की आत्मा समां गई है . बहुत प्रेरणादायक . वाह

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  3. विषाक्त वृक्ष कट चुका है,
    ठूंठ अब शेष रह गया है ....
    ठूंठ को निर्बल न समझो,
    कोई कोपल आ न जाए ....bahut sundar
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  4. बहुत प्रेरणादायक

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  5. बहुत-बहुत आभार आपका
    "तुषार राज रस्तोगी जी "

    सादर

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