स्वतंत्रता दिवस के अवसर पे मुझे बचपन में पढ़ी हुयी माखनलाल चतुर्वेदीजी की कविता "पुष्प कि अभिलाषा से" कुछ पंक्तियाँ याद आ रही हैं......
"चाह नहीं मैं सुरबाला के गहनों में गूँथा जाऊँ
चाह नहीं, प्रेमी-माला में बिंध प्यारी को ललचाऊँ
चाह नहीं, सम्राटों के शव पर हे हरि, डाला जाऊँ
चाह नहीं, देवों के सिर पर चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊँ
मुझे तोड़ लेना वनमाली उस पथ पर देना तुम फेंक
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने जिस पर जावें वीर अनेक ।।"
चाह नहीं, प्रेमी-माला में बिंध प्यारी को ललचाऊँ
चाह नहीं, सम्राटों के शव पर हे हरि, डाला जाऊँ
चाह नहीं, देवों के सिर पर चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊँ
मुझे तोड़ लेना वनमाली उस पथ पर देना तुम फेंक
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने जिस पर जावें वीर अनेक ।।"
पर आज की परिस्थितियों को देखकर लगता है की ये कविता सभी को फिर से पढाई और समझाई जानी चाहिए....
सही मायनो में आज़ादी से हम वंचित हैं...
मन व्यथित है... हालातों को देखकर..... पता नहीं क्यूँ मुझे आज़ादी का जश्न मनाते हुए अच्छा नहीं लग रहा .....
बस उन बलिदानों को याद करने का दिन है.... सही आज़ादी अभी कोसों दूर है...
समुन्दर की गहराई को उसने क्या जाना है,
जिसने कभी उसमें गोते ना लगायें हों....
और वतन के लिए दी गयी मौत क्या होती है ये उसने क्या पहचाना ,
जिसने इस मातृभूमि के लिए कभी एक खरोंच भी न खायी हो....
हे देश को चलाने वालों सुन लो रो रही भारत माता आज,
उसकी चीख पुकार को क्या जाने तुम्हारा राजनीति का बुखार.....
जिसने देखा वीर भगत सिंह-सुखदेव और राजगुरु का बलिदान,
झाँसी की रानी ने भी जिसके लिए दे दिए अपने प्राण....
क्यों हरे कर दिए तुमने आज उस माता के घाव,
जंजीरों में पाया है उसने खुद को फिर से जकड़ता आज .....
जिसके लिए मर-मिटे देश के वीर-जवान,
गद्दारों के तुमने वहां आशियाँ बनाये हैं.....
जिसने खोये देश के लिए अपने गोद के लाल,
उनकी कुर्बानी पर प्रश्न-चिन्ह लगाये हैं....
क्या जानो तुम खून की होली क्या होती है,
तुमने तो बस अपनी जीत की होली ही खेली है....
राज चला कर इस धरती पे कितने खून बहाए हैं,
लूट-लूट कर पैसा तुमने अपनी तिजोरी के रुपये बढ़ाये हैं....
आज़ादी का मतलब क्या है,
संसद की बहस ये क्या जाने.....
आरोप-प्रत्यारोप की होड़ है,
भारत माता के दुःख को कौन पहचाने....
कश्मीर से कन्या कुमारी तक,
कहते हैं हमारा राज है....
पर सही मायनो में देखा जाए तो,
फैला अराजकता का संसार है.....
किसे पड़ी है उन बलिदानों की,
वो तो बस अब नाम हैं....
बना दी हैं ऊंची इमारत आज,
पर हिल गयी बुनियाद है.....
अपनी माता के अश्रु देखकर,
खून न गर जो खौला आज....
उसका रुदन-विलाप सुनकर,
मन का कोना-कोना ना जो दहका आज....
तो व्यर्थ है इस आज़ादी का जश्न,
व्यर्थ है ये मानव जीवन....
धरा कर रही हमारी पुकार,
क्रांति का बिगुल थामे कोई तो आज.......
सांकेतिक आज़ादी की कैद नहीं चाहिए,
आओ करें फिर भारत माता को आज़ाद......
"भारत माता की जय"
strongly expressed meenakshi,i must say.
ReplyDeletegod bless you and god bless our country.
happy independence day.
love.
anu
yup...
ReplyDeletecurrent situations demanding some strong feelings to be expressed....
thank you so much.... <3 <3
happy independence day to you too.....
regards
I really wanted to put some of thoughts here but unfortunately i cudn't...coz it seems some privacy issues of urs are preventing me to do d same...
DeleteMay I..???
yes you can for sure prateek....
Deleteyour valuable opinions are most welcome