जाना हुआ आज मेरा अचानक,उस पुराने से शहर में...
मोहल्ले की उस पुरानी गली में... तो याद आया की ये तो वही जगह है....
जहाँ इक पुराने से मंदिर के सिरहाने वाले पुराने से पीपल के दरख़्त की,सबसे ऊंची डाली के तने पर अपनी मन्नतों का रेशमी धागा बाँधा था कई साल पहले....
बिसरा दिया था जिसको मैंने ...
लपेटा था बडे जतन और उत्साह से कसकर,की कभी पकड़ न कमजोर हो इस विश्वास की.....
आज रंग ...
उस धागे का उड़ गया है,धुप और बरसात में... पर पकड़ आज भी उतनी ही मजबूत है मेरे उस विश्वास की.....
अहसास कराया उस पुराने रेशमी धाँगे ने आज मुझे,विश्वास अटल हो मन में जो,क्षति न कोई हो पाएगी तेरे अंतर संबल को...
मन्नतों में बांधे हुए उन रेशमी धागों को देख आँख ख़ुशी से भर आई मेरी.....
बिसरे हुए विश्वास को उस पुराने से शहर से,अपने संग इस नए शहर में लाकर ,बांधुंगी फिर से एक रेशमी धागा,अपने विश्वास का किसी दरख़्त पर .....
अहसास कराया उस पुराने रेशमी धाँगे ने आज मुझे,विश्वास अटल हो मन में जो,क्षति न कोई हो पाएगी तेरे अंतर संबल को...
मन्नतों में बांधे हुए उन रेशमी धागों को देख आँख ख़ुशी से भर आई मेरी.....
बिसरे हुए विश्वास को उस पुराने से शहर से,अपने संग इस नए शहर में लाकर ,बांधुंगी फिर से एक रेशमी धागा,अपने विश्वास का किसी दरख़्त पर .....
thank you sanjay ji
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