स्वर्णिम सुन्दर मोहक सूरत,
सलिल समान स्वच्छ ह्रदय।।
कान्हा की है मन में मूरत,
सुलभ सनातन रूप लिए।।
अलख अनोखी जागी उर में,
दृग दर्शन की आस करें।।
बंसी बजैय्या रास रचैय्या,
प्रेम प्रीत सब तुम्ही मेरे।।
सलिल समान स्वच्छ ह्रदय।।
कान्हा की है मन में मूरत,
सुलभ सनातन रूप लिए।।
अलख अनोखी जागी उर में,
दृग दर्शन की आस करें।।
बंसी बजैय्या रास रचैय्या,
प्रेम प्रीत सब तुम्ही मेरे।।
कंचन काया श्याम वर्ण प्रभु,
प्रकाश पुंज बन तमस हरें।।
आभा अंतर्मन में जागृत,
ज्यों मंदिर में ज्योति जले।।
कोमल कुमुद मुस्कान कलेवर,
अंधकार अंतस का हर ले।।
मन मंदिर में बसो मनोहर,
श्वास श्वास अब पुकार करे।।
निर्मल निश्छल अद्भुत काया ,
त्वं त्वं उर अब यही रमे।।
भक्ति भेंट करूँ चरणों में,
भक्ति भेंट करूँ चरणों में,
अनुग्रह अटल अनंत रहे।।
कृष्ण छवि वाले अराध्य को मन की गहराई से याद किया. भक्तवत्सल तो नंगे पांव दौड़े चले आते है . बहुत ही सुन्दर शब्द पुष्पांजलि .
ReplyDeleteधन्यवाद आशीष जी
Deleteसादर
अद्भुत..शाश्वत..निर्मल..सुन्दर....
ReplyDeleteवाह मिनाक्षी..
सस्नेह
अनु
शुक्रिया मिनी आंटी ..... :)
Delete<3 <3 <3
बहुत अच्छी रचना
ReplyDeleteधन्यवाद महेंद्र जी
Deleteसादर
कान्हा का सौन्दर्य तो पूरा गोकुळ है
ReplyDeleteहां जी रश्मि दीदी... गोकुल वृन्दावन में खो गया है मन मेरा ....
Deleteसादर
सुन्दर भावमय प्रार्थना ...
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteसादर
बंसी वाले की भक्ति में जो आपने "कान्हा" कहा है ,मैं कहूँगा कि बधाई हो मीनाक्षीजी । सुंदर रचना ।
ReplyDeletedhanyawaad anand ji...
ReplyDeletesaadar
sundar...
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