कुछ नज्में लिखने की कोशिश का रही हूँ, आपकी नज़र कर रही हूँ।
------------------------------------------------------------------------------------------------------------
ये गहराती शाम ..... करवट बदलती फिजा....
अंगडाई ले रहा मौसम...!!
तेरी राहों पे टिकी हुयी नज़रें ....
कानों को इंतज़ार तेरे क़दमों की आहटों का.....
वही सिलसिला कई सालों से.....
पर ये क्या ....!!
इन सिलसिलों के दरमियान .....फिजा की इन करवटों और मौसम की ली हुयी अंगड़ाईयों की तरह तुम्हारे दिल को बदलते हुए देखा है मैंने...
महसूस किया है उसकी हर अंगडाई को....
जो अहसास कराती रहती है मुझको तुम्हारे-मेरे...
बीच के बढ़ते हुए फासलों का हर दिन.... और एक बैचेनी सी छा जाती है दिलो-दिमाग पे .... ठीक उसी तरह जिस तरह से शाम गहराते ही बैचेन हो जाती हैं सागर की लहरें ...
बस उसी वक़्त से कोहरा छाने लगता है और धुंधला जाती हैं सब सुनहरी यादें....उन दिनों की,
जब थमता नहीं था सिलसिला तुम्हारे मेरे बीच सवालों-जवाबों का ... थमता नहीं था ख़्वाबों का कारवां..... रुकते नहीं थे कदम साथ चलते हुए कहीं..... और ख़याल तुझे मेरा और मुझे तेरा घेरे रहता था दिन-रात ....
और फिर आँखों से बरस पड़ता है ....सीली ठंडी हवाओं में वो कोहरा ओस बनकर .... उन यादों को भिगो देता है .... जो इन सिलसिलों में खो गयी हैं कहीं .... हाँ सिलसिले तो वही हैं .....!!
बस बदल चुके हैं "मैं और तुम" ... !!
बस उसी वक़्त से कोहरा छाने लगता है और धुंधला जाती हैं सब सुनहरी यादें....उन दिनों की,
जब थमता नहीं था सिलसिला तुम्हारे मेरे बीच सवालों-जवाबों का ... थमता नहीं था ख़्वाबों का कारवां..... रुकते नहीं थे कदम साथ चलते हुए कहीं..... और ख़याल तुझे मेरा और मुझे तेरा घेरे रहता था दिन-रात ....
और फिर आँखों से बरस पड़ता है ....सीली ठंडी हवाओं में वो कोहरा ओस बनकर .... उन यादों को भिगो देता है .... जो इन सिलसिलों में खो गयी हैं कहीं .... हाँ सिलसिले तो वही हैं .....!!
बस बदल चुके हैं "मैं और तुम" ... !!
--------------------------------------------------------------------------------------------------------
वक़्त ये भी गुज़र जाएगा.... हर उस लम्हे की तरह ...
जो गुज़र गया .....और छोड़ गया एक कसक सी दिल में ...
कुछ अनछुए अहसासों की, जिन्हें टकटकी लगाए देखते रहे बस और वक़्त ले गया साथ अपने उन अहसासों को भी... जिनकी यादों की टीस आज भी उठती है इस दिल मे.... उस सुनामी की तरह जो पलक झपकते ही तबाह कर जाती है सबकुछ जो पनप रहा है दिल की बगिया में कहीं ....
-----------------------------------------------------------------------------------------------कुछ अनछुए अहसासों की, जिन्हें टकटकी लगाए देखते रहे बस और वक़्त ले गया साथ अपने उन अहसासों को भी... जिनकी यादों की टीस आज भी उठती है इस दिल मे.... उस सुनामी की तरह जो पलक झपकते ही तबाह कर जाती है सबकुछ जो पनप रहा है दिल की बगिया में कहीं ....
और फिर उजाड़ और बंज़र सी दिल की उस जमीन पर हवाओं के कुछ थपेड़े आते हैं .. जो अपने सीलेपन में समेटे हुए ले जाते हैं तेरी उन यादों और बातों को कहीं.... जिन्हें वक़्त की रफ़्तार की दौड़ती हुयी तेज़ नज़रों से बचकर चुरा कर रख लिया था अपने पास..... पर वक़्त भी बहुत निष्ठुर है....
दुष्ट ले ही गया आखिर उन्हें मुझसे छीनकर...... जिन यादों के कुछ फूल दिल की बगिया में महकने को मचल उठे थे.....
शायद वक़्त नहीं चाहता था की उसकी रफ़्तार से नज़रे चुराकर मैं उससे चुरा लूं तुम्हे....
दुष्ट ले ही गया आखिर उन्हें मुझसे छीनकर...... जिन यादों के कुछ फूल दिल की बगिया में महकने को मचल उठे थे.....
शायद वक़्त नहीं चाहता था की उसकी रफ़्तार से नज़रे चुराकर मैं उससे चुरा लूं तुम्हे....
हाँ..........
हाँ,बोल रहे थे तुम और मैं सुन रही थी,
मगर उस बोलने और सुनने के बीच,
मीलों का सफ़र तय कर चुकी थी मैं।
पर जब रुका वो सिलसिला,
तो स्तब्ध सी अपनी ही धडकनों को गिनती,
वहीँ खड़ी थी,शायद शून्य ही चली थी मैं ।
हाँ,बोल रहे थे तुम और मैं सुन रही थी,
मगर उस बोलने और सुनने के बीच,
मीलों का सफ़र तय कर चुकी थी मैं।
पर जब रुका वो सिलसिला,
तो स्तब्ध सी अपनी ही धडकनों को गिनती,
वहीँ खड़ी थी,शायद शून्य ही चली थी मैं ।
-----------------------------------------------------------------------------------------------------
ह्रदय-कमल मुरझाया सा है,
और तुम पुनः तरकश भर लाये ,
आक्रमण करने को आतुर हो हर क्षण,
हे निष्ठुर तुमको तनिक दया न आये ????
शब्द-शर आघात करें जब,
कोमल ह्रदय छटपटा जाये,
अंतर्मन विचलित हो जाए,
नयन अश्रु-नीर बहायें।।
और तुम पुनः तरकश भर लाये ,
आक्रमण करने को आतुर हो हर क्षण,
हे निष्ठुर तुमको तनिक दया न आये ????
शब्द-शर आघात करें जब,
कोमल ह्रदय छटपटा जाये,
अंतर्मन विचलित हो जाए,
नयन अश्रु-नीर बहायें।।
-------------------------------------------------------------------------------------------------------------
हिसाब... (1)
सुनो !!
जानती हूँ मैं....
कि हिसाब के बहुत पक्के हो तुम,
पर ये क्या !!
रिश्तों का ही हिसाब कर डाला तुमने तो....
नहीं जानती थी कि प्यार में,
रिश्तों की अदायगी का भी कोई हिसाब होता है ,
हिसाब... (1)
सुनो !!
जानती हूँ मैं....
कि हिसाब के बहुत पक्के हो तुम,
पर ये क्या !!
रिश्तों का ही हिसाब कर डाला तुमने तो....
नहीं जानती थी कि प्यार में,
रिश्तों की अदायगी का भी कोई हिसाब होता है ,
अरे हिसाब की तो वैसे ही कच्ची हूँ ना मैं !!
------------------------------------------------------------------------------------------------
हिसाब.... (2)
बही-खाते थमा जाते हो...
लम्बे-चौड़े हिसाब के,
थामते हुए उन्हें आत्मा कंप सी जाती है,
दिल पर जमी सुर्ख लाल मिटटी का रंग,
देखते ही उसको....
आँखों में उतर सा जाता है,
निःशब्द अधर थर्राते हैं,
पर कुछ भी कह नहीं पाते हैं,
मौन ही सूचक होता है तब ,
ह्रदय में उठी उस पीड़ा का.....
रिश्तों का हिसाब किया तो तुमने,
बैठकर कुछ इंचों की दूरी से ....
पर इस हिसाब-किताब में
देखो ना!!
दिल मीलों दूर चले गए....
-----------------------------------------------------------------------------------------------
हाँ ... विस्मृतियों के आकाश में भ्रमण करते तुम,
भूल चुके हो वो क्षण ...
आज भी जो अविस्मृत हैं मेरे लिए ....
उस आकाश से तुम्हे दिखाई दे जाएँ
कभी यूँही ...
"विस्मृतियों से तुम्हारे इस प्यार में ,उस आकाश तले ,
हम हो चले हैं नदी के दो किनारे!!"
---------------------------------------------------------------------------------------------
कई बार कहा दिल ने मेरे,
तोड़ दे नफरतों के ताले....
दिल पे जो लगा रखे हैं...
पर हर बार तू उन्हें न तोड़ने की
एक नयी वजह दे गया !!
-------------------------------------------------------------------------------------
धुंध में आँख-मिचौली करती,
धीमी गाड़ियों की पार्किंग लाइट्स ...
मंद गति से चल रही है जिंदगी भी ,
आगे कुछ भी नज़र ना आये .....
घनी बस्तियों में कराहती ,
चुभती ठंडी हवा पुरजोर ....
दिल में भी कुछ चुभ सा गया है,
इस बार की सर्दी में है बहुत जोर।।
--------------------------------------------------------------------------------------------
फागुन की अंधड़ भरी बयार,
दस्तक दे रही है,
दरवाजों पे,खिडकियों पे !!
मेरे सवालों को न उड़ा ले जाए,
ये कहीं अपने साथ !!
कि कोई उलझा- उलझा सा रहता है,
आजकल उनमें,
धागों की तरह ..... !!
------------------------------------------------------------------------------------------------
क्यूँ !!
अगर गुड़ियों के साथ खेली है वो,
तो इसका मतलब ये तो नहीं,
कि वो भी एक गुडिया है ...... !!
मौन,
बेजान ..... !!
अरे ऐसा कैसे समझ लिया तुमने ????
वो तो शक्ति है,
सहनशीलता की मूर्ति है,
सृष्टि की ऐसी कल्पना है,
जिसके बिना तुम्हारा अस्तित्व शून्य है,
हाँ !!
उसे भी ये अहंकार है !!
---------------------------------------------------------------------------------------------------
------------------------------
हिसाब.... (2)
बही-खाते थमा जाते हो...
लम्बे-चौड़े हिसाब के,
थामते हुए उन्हें आत्मा कंप सी जाती है,
दिल पर जमी सुर्ख लाल मिटटी का रंग,
देखते ही उसको....
आँखों में उतर सा जाता है,
निःशब्द अधर थर्राते हैं,
पर कुछ भी कह नहीं पाते हैं,
मौन ही सूचक होता है तब ,
ह्रदय में उठी उस पीड़ा का.....
रिश्तों का हिसाब किया तो तुमने,
बैठकर कुछ इंचों की दूरी से ....
पर इस हिसाब-किताब में
देखो ना!!
दिल मीलों दूर चले गए....
------------------------------
हाँ ... विस्मृतियों के आकाश में भ्रमण करते तुम,
भूल चुके हो वो क्षण ...
आज भी जो अविस्मृत हैं मेरे लिए ....
उस आकाश से तुम्हे दिखाई दे जाएँ
कभी यूँही ...
"विस्मृतियों से तुम्हारे इस प्यार में ,उस आकाश तले ,
हम हो चले हैं नदी के दो किनारे!!"
---------------------------------------------------------------------------------------------
कई बार कहा दिल ने मेरे,
तोड़ दे नफरतों के ताले....
दिल पे जो लगा रखे हैं...
पर हर बार तू उन्हें न तोड़ने की
एक नयी वजह दे गया !!
-------------------------------------------------------------------------------------
धुंध में आँख-मिचौली करती,
धीमी गाड़ियों की पार्किंग लाइट्स ...
मंद गति से चल रही है जिंदगी भी ,
आगे कुछ भी नज़र ना आये .....
घनी बस्तियों में कराहती ,
चुभती ठंडी हवा पुरजोर ....
दिल में भी कुछ चुभ सा गया है,
इस बार की सर्दी में है बहुत जोर।।
--------------------------------------------------------------------------------------------
फागुन की अंधड़ भरी बयार,
दस्तक दे रही है,
दरवाजों पे,खिडकियों पे !!
मेरे सवालों को न उड़ा ले जाए,
ये कहीं अपने साथ !!
कि कोई उलझा- उलझा सा रहता है,
आजकल उनमें,
धागों की तरह ..... !!
------------------------------------------------------------------------------------------------
क्यूँ !!
अगर गुड़ियों के साथ खेली है वो,
तो इसका मतलब ये तो नहीं,
कि वो भी एक गुडिया है ...... !!
मौन,
बेजान ..... !!
अरे ऐसा कैसे समझ लिया तुमने ????
वो तो शक्ति है,
सहनशीलता की मूर्ति है,
सृष्टि की ऐसी कल्पना है,
जिसके बिना तुम्हारा अस्तित्व शून्य है,
हाँ !!
उसे भी ये अहंकार है !!
---------------------------------------------------------------------------------------------------