सुलझे अनसुलझे से प्रश्नों की आंधी आती है !!
और मेरी कल्पनाओं के उस पारिजात के सारे पत्ते झड़ा जाती है। जिसमें अभी-अभी तुम्हारी स्मृतियों के पुष्प पल्लवित होने लगे थे।वृक्ष की कोपलों ने हरे-कच चमकीले पत्तों का आकार लिया ही था और उसकी शाखों के सिरो पर नुकीली-नुकीली कलियों के गुच्छों में कुछ कलियाँ,श्वेत कोपलों और सिंदूरी वर्ण की शोभा से सज्जित सुंगंधित पुष्पों का रूप लेने के लिए रात्री की प्रतीक्षा कर रही थीं, आतुर थीं उन स्मृतियों की सुगंध बिखेरने को जो तुमसे मैंने उपहार स्वरुप पायी हैं।
चन्द्रमाँ की चांदनी बिखेरती हुयी यामिनी में जब रातरानी मुस्कुराती है,और कुमुद-कुमुदनी गाते हैं प्रेम के गीत, शीतल समीर बहती है मंद मुस्कान लिए, झींगुर के स्वर गूंजते हैं निशा की गोद में।
ऐसे निरीह वातावरण में कितना सुखद होता तुम्हारी स्मृतियों की सुगंध में विलीन हो जाना,और सूर्योदय होते ही झर जाना निश्छल प्रेम के जैसे और बिखर जाना धरा पर हिमकणों के समान। शोभायमान कर देना उसको भी उस प्रेम की पराकाष्ठा की उस अद्भुत अनुभूति से,जो तुम्हारी स्मृतियों की सुगंध मात्र में विलीन होकर मैंने प्राप्त की होती।
कल्पना में ही सही ह्रदय को प्रेम की पराकाष्ठा की अनुभूति तो होती !!
अरे अभी तो पतझड़ आने में भी विलम्ब था !!
पर उस निष्ठुर आंधी ने जरा भी विचार न किया !!
हाँ निष्ठुर ही तो है,
जो प्रेम से ही अनभिज्ञ है।।
विदित नहीं जिसे,
मूक अक्षियों के आमंत्रण।।
ज्ञात नहीं जिसे अर्थ,
निःशब्द प्रेम के वार्तालाप का।।
न सुन सके जो,
पलकों के उत्थान-पतन में निहित गाथा को।।
नहीं पढ़ सके जो,
अधरों पर क्षत-विक्षत से पड़े वाक्यों को।।
तब से जब भी चलती है वह आंधी,
थाम लेती हूँ मस्तिष्क में ही उसको अपने।
ह्रदय तक पहुँचने ही नहीं देती उस निष्ठुर को !!
क्यूंकि मेरी कल्पना के पारिजात के धवल पुष्पों को,
तुम्हारी स्मृतियों की सुगंध बिखेरना है अंतस में।।
और फिर प्रेम में तुम्हारे झर जाना है उन पुष्पों को,
समर्पित कर देना है अपने आप को तुम्हारे लिए।।
निः संशय यही प्रेम है !!
Sundar Kalpit Rachna aur bhaw ... badhai
ReplyDeletedhanyawaad balbir ji
Deletesaadar
और फिर प्रेम में तुम्हारे झर जाना है उन पुष्पों को,
ReplyDeleteसमर्पित कर देना है अपने आप को तुम्हारे लिए।।
एक परिपक्व कलम की सुन्दर पंक्तियाँ ....
बधाई ...!!
धन्यवाद हरकीरत जी
Deleteसादर
कल्पना के पारिजात पुष्प -पल्लवित होता रहे. ह्रदय असीम प्रेम से लबालब भरा रहे और हमे आपकी काव्य रस धारा का पान करने को मिलता रहे . बहुत सुन्दर , मन प्रफुल्लित हुआ .
ReplyDeleteआशीष जी आपकी शुभकामनाओं के लिए बहुत आभारी हूँ......
Deleteबस आपसे सीखते हुए आगे बढ़ रहे हैं :)
सादर
सुन्दर भावपूर्ण कविता ।
ReplyDeleteधन्यवाद सुरेंदर पाल जी
Deleteसादर
ओह,क्या बात
ReplyDeleteबहुत सुंदर
Deleteधन्यवाद महेंद्र जी
सादर
क्या बात है मीनाक्षी ......खूबसूरत भाव से सज़ा लेखन
ReplyDelete
Deleteधन्यवाद अंजू जी
सादर
Bahut sundar rachna aur sundar tasveeren...
ReplyDeletethanks rahul....
Delete:)
Bahut sundar rachna aur sundar tasveeren...
ReplyDeletevery Nice ,, waah
ReplyDeletethanx sanjay ji
DeleteRegards
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteधन्यवाद रचना जी
Deleteआभार आपका....
सादर
http://bulletinofblog.blogspot.in/2012/10/blog-post_16.html
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया रश्मि दी...
Deleteइसके लिए मैं आपकी आभारी हूँ... :)
आपका आशीर्वाद सदा बना रहे
सादर
बहुत ही उम्दा रचना...गहरी अभिव्यक्ति |
ReplyDeleteसादर |
Deleteधन्यवाद मन्टू कुमार जी
सादर
बहुत सुन्दर सृजन, बधाई.
ReplyDeleteकृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारने का कष्ट करें, आभारी होऊंगा.
बिलकुल शुक्ला जी
Deleteआभार आपका
सादर
bahut bahut badhiya ..sundar ....:)
ReplyDeletedhanyawaad ranju ji
Delete<3
regards
वाह....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर!!!!!
मन महका गयी...
सस्नेह
अनु
मिनी आंटी !!
Deleteहरसिंगार पर अभी तक कभी कुछ लिखा नहीं था.. पहली बार तरी किया :)
आपने सराहा... धन्यवाद आपका
<3
बेहतरीन अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteशुक्रिया सतीश जी...
Deleteबहुत बहुत आभार आपका
सादर
स्मृतियाँ हमारे मन मष्तिष्क में जिस अनुपात में गहरी पैठ बनाते हैं उनका प्रस्फुटन भी उसी अनुपात में जब-तब अनुकूल/प्रतिकूल परिस्थितियों हमारे सम्मुख होता है .....बहुत सुन्दर लगी आपके यह प्रस्तुति ...
ReplyDeleteविजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाओं सहित ...
स्मृतियाँ हमारे मन मष्तिष्क में जिस अनुपात में गहरी पैठ बनाते हैं उनका प्रस्फुटन भी उसी अनुपात में जब-तब अनुकूल/प्रतिकूल परिस्थितियों हमारे सम्मुख होता है .....बहुत सुन्दर लगी आपके यह प्रस्तुति ...
ReplyDeleteविजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाओं सहित ...
धन्यवाद कविता जी....
Deleteआपको और आपके परिवार को भी विजयादशमी पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं....
सादर
उम्दा रचना
ReplyDeletethanx <3
Deleteaaj fir se padhi ek baar :))
Deleteशायद सच है , सिर्फ शब्द संजोने से कविता का सृजन नहीं होता ! अंतर्मन से महसूस कि गयी अनुभूतियों को शब्दों का श्रींगार देना ही सृजन है. ! एक सॉफ्टवेर इंजिनियर से ऐसी उम्मीद वाकई विस्मय कारी है. अति उत्तम शब्दों का चयन और गति अतुलनीय.....!! लिखते रहिये
ReplyDeletethanks a lot :)
Deleteऔर फिर प्रेम में तुम्हारे झर जाना है उन पुष्पों को,
ReplyDeleteसमर्पित कर देना है अपने आप को तुम्हारे लिए।।
:)
अलौकिक भाव !
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ....
ReplyDeleteशब्द नहीं मिल रहे भाव अभिव्यक्त करने को ....
शुभकामनायें मीनाक्षी...
shukriya :) <3
Deleteक्या बात है!
ReplyDeleteबहुत सुंदर भाव-बोध .... एक प्रांजल जीवन-दर्शन से संबलित प्रेम-भाव.... बल्कि यूं कहा जाए प्रेम आत्मा में यूं सन्निहित है कि जीवन-दर्शन स्वभावत: साफ है... जीवन-दर्शन यहां कोई दर्शन नहीं कोई ज्ञान नहीं ... यहां प्रेम एक स्वभाव की तरह व्यक्त है... यहां स्वभावत: पता है कि विचार आंधियां मस्तिष्क और मात्र मस्तिष्क का गुण-धर्म है और इन्हें मस्तिष्क में ही थाम लेना है ... कल्पना निर्दोष है ... कल्पना को प्रदूषणों से बचा लेने का हौसला है ... यहां प्रेम सुगंध है और प्रेम समर्पण है ... यह समर्पण मूल्य-रूपी विचारों की यानि मस्तिष्क की निर्मिति नहीं है ... यह अंतस में खिला फूल है ... बहुत सुंदर कविता ... आपको बधाई ..
ReplyDeletedhanyawaad rakesh ji
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeletebahut achchi h
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