अपने एक मित्र के एल्बम में ये कमल के फूल देखते ही मन खुश हो गया ... काशी-विश्वनाथ मंदिर के बाहर किसी दुकान पर रखे इन कमल के फूलों वाली एक फोटो ने मुझे अपने ऊपर नज़रें टिकाने को मजबूर कर दिया जैसे।
पता नहीं क्यूँ,बचपन से ही कमल के फूल से मुझे बहुत प्रेम है,देखते ही जैसे एक आनंद की लहर सी उठती है मन में।
और कमल,वो भी जो भगवान को चढ़ना हो सहसा ही आकर्षित का लेते हैं मुझे।
लगता है अभी लूं उसको अपनी हथेलियों में और निहारूं देर तक उसकी सुन्दरता को,निर्मलता को उसकी बसा लूं अपनी साँसों में और महसूस करूँ उसके ह्रदय की असीम कोमलता को,मानो वो मुझसे बातें करने लगता हो।
अजीब सा प्रेम उमड़ पड़ता है मन में उसके आर्द्र से स्वभाव पर, जो मन को शीतलता देता रहता है।मन करता है बस यूँही निहारती रहूँ उसे,हाथों में लेकर,पर उसकी मंजिल तो कहीं और ही होती है।उसे तो भगवान के चरणों में अर्पित होना है।
बातों ही बातों में कहता है मुझसे फिर वो,कि भेंट कर दो मुझे उस इश्वर के चरणों में कि मेरा जीवन सफल हो जाए।
मुझे कुम्हलाने में वक़्त नहीं लगता,और तुम्हे भी तो मैं कुम्हलाया हुआ पसंद नहीं ना !!
बहुत हो चुकीं बातें अब,छोड़ आओ मुझे उस मंदिर में,
जहाँ जाकर मैं धन्य हो जाऊं !!
सकुचा जाती हूँ मैं तभी, कि कैसे कठोर हो गया अचानक वो कोमल सा कमल का फूल मेरे प्रति!!
फिर मेरा विवेक मुझसे कहता है, सही तो कह रहा है ये कमल का फूल।
और चढ़ा आती हूँ जाकर उसको भगवान के चरणों में,सोच लेती हूँ कि मेरा प्रेम उसके साथ भगवान तक पहुच गया,और खुश हो जाती हूँ।
उसका जीवन सफल हो जाता है,और मेरी आस्था की सरिता को नया किनारा मिल जाता है।
शायद वो आस्था ही है जो उस कमल के फूल से मुझे जोड़े हुयी थी।
सही ही कहा था उसने-"तुम्हे भी तो मैं कुम्हलाया हुआ पसंद नहीं ना !"
वाह अच्छा लिखा है
ReplyDeletejo aaya hai, wo jayega...
ReplyDeleteham tum thora jayda din jee lete hain, kamal ka jeevan ek din rahta hai, bas yahi antar hai:)
nice writing
ReplyDeleteBahut sundar vichaar...
ReplyDeleteप्रेम फूल से भी..और ईश्वर से भी.....
ReplyDeleteएक सी बात है....
सुन्दर अभिव्यक्ति मीनाक्षी...
सस्नेह
अनु