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Sunday, 7 October 2012

"यकीन"



सांझ का वो ढलता हुआ सूरज ..... देखती हूँ रोज़ मैं।
मिन्नतें करके कई रोकती हूँ,
रोज़ उसको कि मत जाओ।
मत छोड़ो मुझे अंधेरों के आगोश में, 
कि ये रात नहीं कटती मुझसे।

छोटी सी इक पहाड़ी के पीछे से झांकता हुआ वो कहता है।
कल आऊंगा फिर से,
इंतज़ार करना मेरा।
और फिर  चाँद भी तो आएगा,
कुछ उसको भी तो सताओ ना।

मैं सहम सी जाती हूँ सुनकर उसकी रोज़-रोज़ वही बात।
कितनी बार समझाऊं उसको,
की चाँद से मेरा झगडा है।
फिर चुपचाप हो जाती हूँ,
कह देती हूँ अलविदा उसे।

उस पर यकीन करती हूँ मैं क्यूंकि वो अपना वादा रोज़ निभाता है।
कुछ देर सो भी जाती हूँ ये सोचकर ,
कि  आकर मुझे जगा ही देगा वो।
 रात भी कट जाती है कुछ,
इसी यकीन के साथ सुबह के इंतज़ार में।

कुछ सुकून तो आता है दिल को उसके कहे उन लफ़्ज़ों से।
उसने वादा अपना आज तक तोडा नहीं,
रोज़ सुबह आ जाता है मेरी खिड़की पे।
मुस्कुराता हुआ और कहता है,
लो मैं आ गया फिर से।

हाँ यकीन का है हमारा रिश्ता जो कभी नहीं टूटेगा।
काश ये  यकीन  जीवन का हिस्सा बन जाए,
और साथ-साथ चले हमेशा।
फिर नहीं सताएगा मुझे ये चाँद कभी,
और नाही  अंधेरों का डर।

4 comments:

  1. चाँद एकदिन आएगा सुलह के लिए .और देदीप्यमान सूरज ऐसे ही अपनी किरणों से तुम्हारा पथ प्रदर्शन करता रहे .

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  2. हाँ यकीन का है हमारा रिश्ता जो कभी नहीं टूटेगा।
    काश ये यकीन जीवन का हिस्सा बन जाए...ummid par duniya kaayam hai ..bahut sundar likha hai meenakshi aapne ..

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  3. WAH JI WAH ............BAHUT KHUB ....


    उसने वादा अपना आज तक तोडा नहीं,
    रोज़ सुबह आ जाता है मेरी खिड़की पे।
    मुस्कुराता हुआ और कहता है,
    लो मैं आ गया फिर से।

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