तुम कुछ कहते नहीं मुझसे कभी,
पर तुम इशारा करते हो मुझे की भूल जाओ....!!
अरे कैसे भुला दूं उन लम्हों को .... उन नजारों को ... उन शामों को... उन दोपहरों को.. उस सफ़र को.... उन बातो को...और उन यादों को... जिसमे जिए हैं हज़ारों युग जैसे,हज़ारों खुशियाँ जी हैं जिसमें.... जो आज भी दिल के किसी कोने में सहेजी हुयी है मैंने,बिलकुल वैसे ही जैसे तुम्हारे दिए हुए ग्रीटिंग कार्ड्स सहेज रखें है... मैंने अलमारी के कोने में बने हुए एक लोकर में ....जब कभी खोल लेती हूँ उस अलमारी को.... और तुमसे नज़रें चुराकर देख लेती हूँ..... उन सजे हुए से कागज़ के टुकड़ों को..... देखकर कुछ तसल्ली पाता है दिल.... की इनमे अभी भी सहेजा हुआ है मैंने कुछ अंश तुम्हारे प्यार का.... पर तुम्हारे लिए तो ये अब सिर्फ सजे हुए कागज़ के टुकड़े ही हैं शायद ...!!
खटखटाती हैं दिल के दरवाज़े अक्सर वो यादें .... मुझे याद दिलाती रहती हैं उन लम्हों की.... बार-बार... !!
जब तुम्हारी बाहों में मानो कायनात पा ली थी मैंने... तुम्हारी आँखों में मिल गयी थी पनाह.....
हर सौगात मेरे जीवन की तुम पर थी न्योछावर और हर आरजू मेरे दिल की तुम्हारे लिए थी पागल....
बेरुखी दिल ये मेरा तुमसे रख सकता नहीं,उसके लिए तो उसे पत्थर का बनना होगा....!!
फिर कैसे भूल जाऊं????
हाँ ये आँखें अब पथरा चुकी.... छुपकर रोते-रोते,तुम्हारी वापसी की राह तकते-तकते.. पर तुम तो बहुत दूर निकल चुके हो शायद.... की जहाँ से मुड़कर देखने पर भी मैं तुम्हें नहीं दिखाई दूंगी अब तो .....
वीरान सी उस राह पर भटक रही हूँ तन्हा अब.... चाहकर भी तुमको आवाज़ लगाना मुश्किल है.....
पर तुम इशारा करते हो मुझे की भूल जाओ....!!
अरे कैसे भुला दूं उन लम्हों को .... उन नजारों को ... उन शामों को... उन दोपहरों को.. उस सफ़र को.... उन बातो को...और उन यादों को... जिसमे जिए हैं हज़ारों युग जैसे,हज़ारों खुशियाँ जी हैं जिसमें.... जो आज भी दिल के किसी कोने में सहेजी हुयी है मैंने,बिलकुल वैसे ही जैसे तुम्हारे दिए हुए ग्रीटिंग कार्ड्स सहेज रखें है... मैंने अलमारी के कोने में बने हुए एक लोकर में ....जब कभी खोल लेती हूँ उस अलमारी को.... और तुमसे नज़रें चुराकर देख लेती हूँ..... उन सजे हुए से कागज़ के टुकड़ों को..... देखकर कुछ तसल्ली पाता है दिल.... की इनमे अभी भी सहेजा हुआ है मैंने कुछ अंश तुम्हारे प्यार का.... पर तुम्हारे लिए तो ये अब सिर्फ सजे हुए कागज़ के टुकड़े ही हैं शायद ...!!
खटखटाती हैं दिल के दरवाज़े अक्सर वो यादें .... मुझे याद दिलाती रहती हैं उन लम्हों की.... बार-बार... !!
जब तुम्हारी बाहों में मानो कायनात पा ली थी मैंने... तुम्हारी आँखों में मिल गयी थी पनाह.....
हर सौगात मेरे जीवन की तुम पर थी न्योछावर और हर आरजू मेरे दिल की तुम्हारे लिए थी पागल....
बेरुखी दिल ये मेरा तुमसे रख सकता नहीं,उसके लिए तो उसे पत्थर का बनना होगा....!!
फिर कैसे भूल जाऊं????
हाँ ये आँखें अब पथरा चुकी.... छुपकर रोते-रोते,तुम्हारी वापसी की राह तकते-तकते.. पर तुम तो बहुत दूर निकल चुके हो शायद.... की जहाँ से मुड़कर देखने पर भी मैं तुम्हें नहीं दिखाई दूंगी अब तो .....
वीरान सी उस राह पर भटक रही हूँ तन्हा अब.... चाहकर भी तुमको आवाज़ लगाना मुश्किल है.....
अरे कैसे भुला दूं उन लम्हों को ..Kuch lamhe bhulaye nhi ja sakte .unki meethi yaad hamesha bani rahti hain ..........bahut khoob likha
ReplyDeleteशिद्दत से बुलाओ , वो जहाँ भी जिस मोड़ पर होगा . लौट आएगा . सुन्दर लिखा है .
ReplyDelete***** SACHCHHI ME DIL KO CHHU GAYI ************ BAHUT HI ACHHA LIKH HAI AAP NE
ReplyDeletebahut hi payara likha hai sachchi me** DIL KO CHHU GAYA***
ReplyDeleteकौन कहता है भूलने को....
ReplyDeleteयाद रखो...यादें भी तो संबल देती हैं....
सस्नेह
अनु
aana hi padega :)
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