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Saturday 8 September 2012

"कान्हा"

स्वर्णिम सुन्दर मोहक सूरत,
सलिल समान स्वच्छ  ह्रदय।।
कान्हा की है मन में मूरत,
सुलभ सनातन रूप लिए।।

अलख अनोखी जागी उर में,
दृग दर्शन की आस करें।।
बंसी बजैय्या रास रचैय्या,
प्रेम प्रीत सब तुम्ही मेरे।।
 




कंचन काया श्याम वर्ण प्रभु,
प्रकाश पुंज बन तमस हरें।।
आभा अंतर्मन में जागृत,
ज्यों मंदिर में ज्योति जले।।




कोमल कुमुद मुस्कान कलेवर,
अंधकार अंतस  का हर ले।।
मन मंदिर में बसो मनोहर,
श्वास श्वास अब पुकार करे।।

निर्मल निश्छल अद्भुत काया ,
त्वं त्वं  उर अब यही रमे।।
भक्ति भेंट करूँ चरणों में,
अनुग्रह अटल अनंत रहे।।

13 comments:

  1. कृष्ण छवि वाले अराध्य को मन की गहराई से याद किया. भक्तवत्सल तो नंगे पांव दौड़े चले आते है . बहुत ही सुन्दर शब्द पुष्पांजलि .

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    1. धन्यवाद आशीष जी
      सादर

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  2. अद्भुत..शाश्वत..निर्मल..सुन्दर....

    वाह मिनाक्षी..
    सस्नेह
    अनु

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    1. शुक्रिया मिनी आंटी ..... :)

      <3 <3 <3

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  3. Replies
    1. धन्यवाद महेंद्र जी

      सादर

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  4. कान्हा का सौन्दर्य तो पूरा गोकुळ है

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    1. हां जी रश्मि दीदी... गोकुल वृन्दावन में खो गया है मन मेरा ....

      सादर

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  5. सुन्दर भावमय प्रार्थना ...

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  6. बंसी वाले की भक्ति में जो आपने "कान्हा" कहा है ,मैं कहूँगा कि बधाई हो मीनाक्षीजी । सुंदर रचना ।

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